Friday, December 5

पाकिस्तान के सबसे शक्तिशाली जनरल बने असीम मुनीर, पहले CDF के रूप में ताजपोशी; शहबाज सरकार की पकड़ कमजोर

इस्लामाबाद: पाकिस्तान में सत्ता और सैन्य संरचना के समीकरणों में बड़ा बदलाव करते हुए फील्ड मार्शल असीम मुनीर को देश का पहला चीफ ऑफ डिफेंस फोर्सेज (CDF) नियुक्त किया गया है। राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी ने गुरुवार देर शाम आधिकारिक नोटिफिकेशन जारी कर उनकी नियुक्ति को मंजूरी दे दी। मुनीर अगले 5 वर्षों तक इस पद पर बने रहेंगे।

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि वे CDF के साथ-साथ चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ (COAS) का पद भी संभालते रहेंगे—यानी पाकिस्तान की सेना की तमाम कमान अब एक ही व्यक्ति के हाथों में केंद्रित हो गई है।

सियासी सौदेबाज़ी के बाद हुआ फैसला

सूत्रों के मुताबिक, मुनीर की नियुक्ति में कई हफ्तों की राजनीतिक बातचीत और पर्दे के पीछे गहन सौदेबाज़ी चली। CNN-News18 की एक रिपोर्ट में दावा किया गया कि शरीफ परिवार और सेना के शीर्ष नेतृत्व के बीच खींचतान की वजह से ताजपोशी में देरी हो रही थी।

रिपोर्ट के अनुसार,

  • शरीफ परिवार चाहता था कि भविष्य में सेना उनका समर्थन सुनिश्चित करे।
  • वहीं, मुनीर तब तक सहमत नहीं हुए जब तक उन्हें दोनों पदों पर पूर्ण 5 साल का कार्यकाल देने की गारंटी नहीं मिली।

विश्लेषकों का मानना है कि यह निर्णय एक “संस्थागत सुधार” के बजाय एक राजनीतिक समझौते के रूप में सामने आया है।

मुनीर बने पाकिस्तान के सबसे ताकतवर मिलिट्री अफसर

CDF और COAS दोनों पद अपने पास रखने के बाद असीम मुनीर पाकिस्तान के हालिया इतिहास में सबसे शक्तिशाली सैन्य अधिकारी बन गए हैं। आलोचकों का कहना है कि यह कदम उस देश में सत्ता का केंद्रीकरण बढ़ाता है जहां सेना पहले से ही राजनीतिक फैसलों पर गहरा प्रभाव रखती है।

स्थिति को और महत्वपूर्ण बनाता है फील्ड मार्शल का वह दर्जा, जिसके ज़रिए—

  • असीम मुनीर को आजीवन जांच या अभियोजन से सुरक्षा मिल गई है।
  • वे व्यावहारिक रूप से प्रधानमंत्री से भी ऊपर के दर्जे की ताकत रखते हैं।

राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि इस कदम से पाकिस्तान का सैन्य ढांचा आने वाले वर्षों में एक ही वर्दी में सिमटता दिखाई देगा, जिसका असर देश की लोकतांत्रिक जवाबदेही पर पड़ेगा।

शहबाज सरकार की चुनौती बढ़ी

शहबाज शरीफ सरकार इस नियुक्ति को “संरचनात्मक सुधार” बता रही है, लेकिन आलोचक इसे सेना के प्रभाव को और मजबूत करने वाला निर्णय मान रहे हैं। इससे यह भी साफ हो गया है कि आने वाले दिनों में प्रधानमंत्री कार्यालय और सैन्य नेतृत्व के बीच शक्ति संतुलन और अधिक झुक सकता है।

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