Monday, December 1

बिहार: महिला विश्वविद्यालय शिक्षकों के लिए चाइल्ड केयर लीव नीति अब तक अधर में, 10 साल से इंतज़ार जारी

पटना: महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देने वाली नीतियों के कारण चर्चित नीतीश कुमार की अगुवाई वाली एनडीए सरकार के सामने एक बड़ी विडंबना खड़ी है। बिहार के विभिन्न विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में कार्यरत सैकड़ों महिला शिक्षिकाएं पिछले 10 वर्षों से चाइल्ड केयर लीव (CCL) के अधिकार को लागू करवाने के लिए संघर्ष कर रही हैं।

साल 2015 में केंद्र सरकार की अधिसूचना के बाद देशभर में महिला सरकारी कर्मचारियों को 18 वर्ष से कम उम्र के दो बच्चों की देखभाल के लिए 730 दिनों (दो साल) की CCL का प्रावधान लागू हो चुका है। स्कूली शिक्षिकाएं और अन्य विभागों की महिला कर्मचारी इस सुविधा का लाभ लंबे समय से ले रही हैं, लेकिन बिहार के विश्वविद्यालय शिक्षकों के मामले में यह कानून अभी तक जमीन पर लागू नहीं हो पाया है।

■ 2015 से चली आ रही प्रक्रिया, लेकिन अधिसूचना अब भी लंबित

केंद्र सरकार के प्रावधानों के अनुरूप राज्य सरकार ने भी 2015 में यह नीति स्वीकार की थी। इसके बाद महिला शिक्षकों को 180 दिन का मातृत्व अवकाश और दो साल की चाइल्ड केयर लीव देने पर सिद्धांत रूप में सहमति बनी।

यूजीसी के नियम भी स्पष्ट रूप से कहते हैं कि महिला फैकल्टी सदस्य दो वर्षों तक CCL की हकदार हैं। इसी आधार पर राज्यपाल सचिवालय ने 2019 में सेवा शर्त नियमों में संशोधन का मसौदा तैयार कर राज्य सरकार को भेजा था।

यह मसौदा बाद में बिहार राज्य उच्च शिक्षा परिषद को भेजा गया, जिसने दिसंबर 2023 में इसे मंज़ूरी देकर फिर से शिक्षा विभाग को भेज दिया। इसके बावजूद, अधिसूचना जारी न होने से यह प्रस्ताव वर्षों से सचिवालय में अटका हुआ है।

■ “सभी छुट्टियाँ ख़त्म करनी पड़ रही हैं”, शिक्षिकाओं की मजबूरी

बिहार विश्वविद्यालय शिक्षक संघों के महासंघ के कार्यकारी अध्यक्ष कन्हैया बहादुर सिन्हा ने कहा कि इतने वर्षों की कोशिशों के बाद भी यह नीति लागू नहीं हो पाई है। उन्होंने खेद जताते हुए कहा—
“जब तक CCL लागू नहीं होती, महिला शिक्षकों को बच्चों की देखभाल के लिए अपनी सभी छुट्टियाँ खत्म करनी पड़ती हैं। कई बार उन्हें वेतन कटौती का भी सामना करना पड़ता है।”

■ सरकार कह रही—“मामला विचाराधीन”

राज्य के उच्च शिक्षा निदेशक एन.के. अग्रवाल ने बताया कि मामला सरकार के विचाराधीन है और जल्द ही सक्षम प्राधिकारी इस पर अंतिम निर्णय लेगा।

■ महिला शिक्षकों की अपील

महिला शिक्षिकाओं का कहना है कि वर्षों से लंबित इस फैसले को तुरंत लागू किया जाए, ताकि वे बिना आर्थिक नुकसान और मानसिक दबाव के बच्चों की जिम्मेदारी निभा सकें।

स्पष्ट है कि एक दशक से अधर में लटका यह प्रस्ताव अब निर्णायक कदम की प्रतीक्षा कर रहा है। महिला शिक्षकों की उम्मीद है कि राज्य सरकार शीघ्र ही इस नीति को अधिसूचित कर उन्हें उनका वैध अधिकार सौंपेगी।

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