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बंगले को लेकर हंगामा क्यों? 2015 में लालू ने विधायकों को खुद समझाया था, मारामारी की जरूरत नहीं

पटना: बिहार में राजद द्वारा राबड़ी देवी को बंगला आवंटन को लेकर सुर्खियां बनी हुई हैं। लेकिन यही लालू यादव हैं, जिन्होंने 2015 में अपने विधायकों को साफ-साफ समझाया था कि सरकारी आवास के लिए मारामारी करने की जरूरत नहीं है।

लालू का खुद का उदाहरण
लालू यादव ने मुख्यमंत्री बनने के बाद चार महीने तक अपने पूरे परिवार के साथ चपरासी क्वार्टर में रहकर प्रशासनिक व्यवस्था चलाई थी। यह क्वार्टर उनका नहीं था; उनके बड़े भाई वहां चपरासी पद पर काम करते थे। 1980 में पहली बार विधायक बनने के बाद भी उन्होंने यही जगह चुनी। 1988 में नेता प्रतिपक्ष और 1990 में मुख्यमंत्री बनने के बाद भी उन्होंने पहले चार महीने चपरासी क्वार्टर में बिताए।

जनता दरबार का संदेश
मुख्यमंत्री के रूप में लालू यादव ने इसी क्वार्टर में जनता दरबार लगाया। वहां कोई भव्य प्रशासनिक दफ्तर नहीं था, बस एक लकड़ी की चौकी और कुछ कुर्सियां। सुरक्षा का तामझाम नहीं था, और लोग बिना अनुमति सीधे मुख्यमंत्री से मिल सकते थे। लालू यादव ने यह दिखाया कि सत्ता का संचालन महल या आलीशान भवन से नहीं, बल्कि जनता के बीच बैठकर किया जा सकता है।

मंत्रियों का साधारण जीवन
लालू यादव ही नहीं, उनके मंत्रिमंडल के कई सदस्य भी बड़े बंगले में रहने की बजाय साधारण सरकारी या मित्रों के घरों में रहे। कृषि मंत्री रामजीवन सिंह और ऊर्जा एवं सिंचाई मंत्री जगदानंद सिंह ने भी मामूली आवासों में रहकर जनता के करीब रहना चुना।

“मैं जनता का आदमी हूं”
एक साक्षात्कार में लालू यादव ने कहा था, “मैं जमींदार का बेटा नहीं, बल्कि पब्लिक का आदमी हूं। मैं लाखों लोगों से इसी ग्रामीण शैली में बात करता हूं ताकि लोग जान सकें कि मैं उन्हीं का हिस्सा हूं। निर्णय मैं तुरंत लेता हूं और जनता के हित में करता हूं।”

आवास के लिए मारामारी क्यों?
2015 में राजद-नीतीश गठबंधन के दौरान कुछ विधायकों पर आरोप लगे कि उन्होंने बिना आवंटन के पूर्व विधायकों के बंगले पर कब्जा कर लिया। इस पर लालू यादव ने विधायकों को समझाया था कि सरकारी आवास नियमों के अनुसार ही मिलेगा, किसी को मारामारी करने की जरूरत नहीं है। उन्होंने अपनी कहानी सुनाकर कहा कि उन्होंने खुद चार महीने चपरासी क्वार्टर में रहकर जनता के बीच काम किया।

निष्कर्ष
लालू यादव के अनुसार, सरकारी आवास और सुविधाओं के मामले में धैर्य और नियमों का पालन करना चाहिए। जनता के हित में काम करने का मूल मंत्र यही है कि कोई भी सत्ता का लाभ लेने के लिए दूसरों के अधिकारों का हनन न करे।

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