
पटना: लोकतंत्र में जनता द्वारा चुने गए नेताओं की आर्थिक स्थिति देखकर अक्सर लोगों की आंखें खुली की खुली रह जाती हैं। बिहार में विधायक (MLA) और विधान परिषद सदस्य (MLC) का वेतन तो समान है, लेकिन उनके भत्ते वेतन से भी अधिक हैं।
माननीयों का वेतन
माननीय एमएलए या एमएलसी को वेतन के रूप में 50,000 रुपए प्रतिमाह मिलते हैं। लेकिन यह उनकी कुल आमदनी का केवल एक हिस्सा है। इनके भत्ते कई मदों में वितरित होते हैं और यह राशि उनकी मूल वेतन से अधिक होती है।
भत्तों का ब्योरा
- क्षेत्रीय भत्ता: 55,000 रुपए प्रतिमाह, वेतन से 5,000 रुपए अधिक।
- दैनिक भत्ता:
- पटना में कार्य के लिए 3,500 रुपए प्रति दिन, अधिकतम 20 दिन = 60,000 रुपए।
- राज्य के किसी अन्य जिले में 3,000 रुपए प्रति दिन, अधिकतम 20 दिन।
- राज्य से बाहर 3,300 रुपए प्रति दिन, अधिकतम 15 दिन = 45,000 रुपए।
- अन्य भत्ते: दूरभाष, बिजली बिल, स्टेशनरी, कूपन, निजी पीए आदि के लिए अलग-अलग मद में राशि।
मंत्री बनते ही भत्ते और बढ़ते हैं
अगर कोई MLA या MLC मंत्री बन जाता है, तो वे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बराबर वेतन पाएंगे।
- वेतन: 65,000 रुपए प्रतिमाह
- क्षेत्रीय भत्ता: 70,000 रुपए प्रतिमाह
- अतिथि भत्ता: 30,000 रुपए प्रतिमाह
यह राशि उनके मंत्री बने रहने की अवधि पर निर्भर नहीं करती।
पेंशन में होता है अंतर
माननीयों की पेंशन उनकी सेवा अवधि पर निर्भर करती है।
- मूल पेंशन: 45,000 रुपए प्रतिमाह
- अधिक वर्षों तक सेवा करने वालों को प्रति वर्ष 4,000 रुपए की दर से अतिरिक्त राशि मिलती है।
उदाहरण: 10 वर्षों तक MLA रहे व्यक्ति को मूल पेंशन 45,000 रुपए में 40,000 रुपए और जुड़कर मिलेंगे।
बिहार में जनता द्वारा चुने गए नेताओं की यह आर्थिक व्यवस्था दर्शाती है कि वेतन की तुलना में भत्तों का हिस्सा उनके लिए अधिक लाभकारी है।