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बिहार की सियासत में आधी रात की कहानी: लालू ने नीतीश का खेल बिगाड़ा, फंसे मनमोहन सिंह

पटना, 26 नवंबर 2025: बिहार की राजनीति में 2005 का वह विवाद आज भी याद किया जाता है, जब नीतीश कुमार और रामविलास पासवान सरकार बनाने की तैयारी कर रहे थे, लेकिन लालू यादव ने खेल बिगाड़ दिया। नीतीश कुमार ने इसे कांग्रेस के ‘लालूकरण’ का उदाहरण बताते हुए आरोप लगाया था कि उनके इशारे पर केंद्र सरकार और राज्यपाल ने रातों-रात बिहार विधानसभा भंग कर दी थी।

संयोग और दबाव:
फरवरी 2005 के विधानसभा चुनाव में किसी भी दल को पूर्ण बहुमत नहीं मिला। राजद को 75, जदयू को 55, भाजपा को 37, लोजपा को 29 और कांग्रेस को 10 सीटें मिलीं। राष्ट्रपति शासन के दौरान भी सरकार बनाने की कोशिशें जारी थीं।

लेकिन मई 2005 में जब नीतीश कुमार और रामविलास पासवान सरकार बनाने को तैयार हुए, तभी लालू यादव सक्रिय हो गए। तत्कालीन रेल मंत्री लालू यादव ने केंद्र की मनमोहन सिंह सरकार और राज्यपाल बूटा सिंह पर दबाव डालकर विधानसभा भंग करने का मार्ग प्रशस्त किया।

आधी रात की मंजूरी:
राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम विदेश में थे। केंद्रीय कैबिनेट ने आधी रात को राष्ट्रपति को फैक्स भेजकर मंजूरी ली और 23 मई 2005 को बिहार विधानसभा भंग कर दी गई।

सुप्रीम कोर्ट की आलोचना:
एनडीए ने इस फैसले को चुनौती दी। अक्टूबर 2005 में सुप्रीम कोर्ट ने इसे असंवैधानिक करार दिया। अदालत ने तत्कालीन राज्यपाल और केंद्र सरकार की जल्दीबाजी और पक्षपातपूर्ण कार्रवाई की कड़ी आलोचना की। अदालत ने साफ कहा कि राज्यपाल की रिपोर्ट दुर्भावना से प्रेरित थी और जदयू को सरकार बनाने से रोकने के लिए बनाई गई थी।

नीतीश ने क्या कहा था:
नीतीश कुमार ने उस समय कहा था, “कांग्रेस का लालूकरण हो चुका है। लालू यादव से सीख कर कांग्रेस भी नियमों को तोड़ने में कोई संकोच नहीं करती।” उन्होंने अपनी मुख्यमंत्री बनने की इच्छा को जनता की भावना बताते हुए टाल दिया।

नतीजा:
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद केंद्र सरकार और राज्यपाल की फजीहत हुई। राज्यपाल बूटा सिंह को पद छोड़ना पड़ा। इसके बाद नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए ने बिहार में पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाई।

यह घटना बिहार की राजनीति में अब भी “आधी रात का खेल” के रूप में याद की जाती है, जिसने लोकतांत्रिक प्रक्रिया और संविधान की मर्यादा पर कई सवाल खड़े कर दिए थे।

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