Tuesday, November 25

राममय अयोध्या, कृष्णमयी मथुरा! बांके बिहारी का 482वां प्राकट्योत्सव धूमधाम से मनाया गया

वृंदावन: धर्म नगरी वृंदावन में आज भगवान श्री बांके बिहारी महाराज का 482वां प्राकट्योत्सव अत्यंत हर्षोल्लास और भक्ति के साथ मनाया गया। यह पावन पर्व प्रतिवर्ष मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को आता है और इस वर्ष भक्तों के लिए विशेष उल्लास लेकर आया।

दिव्य महाभिषेक से हुआ आरंभ

उत्सव की शुरुआत निधिवन राज मंदिर परिसर में सुबह 4 बजे हुई। इस समय ठाकुर जी का पंचामृत महाभिषेक किया गया, जिसमें दूध, दही, घी, शहद और बूरा का उपयोग किया गया। भक्तों के अनुसार यह स्नान अत्यंत मंगलकारी माना जाता है। मंदिर में हरिनाम संकीर्तन की गूंज और भजन-कीर्तन ने वातावरण को पावन कर दिया।

भव्य शोभायात्रा ने बढ़ाया उल्लास

प्राकट्योत्सव का सबसे प्रमुख आकर्षण रही स्वामी हरिदास जी महाराज की शोभायात्रा। स्वामी हरिदास, जिन्होंने बांके बिहारी जी को प्रकट किया था, चांदी के रथ पर विराजमान होकर निधिवन से बांके बिहारी मंदिर के लिए प्रस्थान किए। शोभायात्रा रंगजी मंदिर, अनाज मंडी और दाऊजी तिराहा से होकर मंदिर पहुंची, जिसमें लाखों श्रद्धालु भक्ति और उल्लास में नृत्य और कीर्तन करते हुए शामिल हुए।

मंदिर परिसर में बिखरी भक्ति की छटा

बांके बिहारी मंदिर और निधिवन राज मंदिर को देश-विदेश से मंगाए गए सुगंधित फूलों, दीपों और झालरों से सजाया गया। मंदिर प्रांगण पीले रंग की आभा से दमक रहा था। भक्तजन थिरकते हुए, जयकारों और भजनों के साथ उत्सव में डूबे रहे।

विशेष बात: यह उत्सव गुरु (स्वामी हरिदास) और गोविंद (बांके बिहारी जी) के अनुपम प्रेम संबंध को जीवंत करता है। राजभोग प्रसादी भी स्वामी हरिदास जी के आगमन के बाद ही ठाकुर जी को अर्पित की जाती है।

देश-विदेश से आए लाखों श्रद्धालुओं के दर्शन और भक्ति ने वृंदावन को एक बार फिर आस्था और उल्लास से भर दिया।

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