
कट्टरपंथियों ने 1971 की आजादी की बुनियाद को किया तार-तार, ढाका दहला 50 धमाकों से**
ढाका/नई दिल्ली। शेख हसीना को सोमवार को सुनाई गई फांसी की सजा ने बांग्लादेश की राजनीति और उसकी वैचारिक पहचान को गहरे संकट में डाल दिया है। नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार पर आरोप है कि उसने महज एक साल में देश की उस धारा को उखाड़ फेंका है, जिसने 1971 में पाकिस्तान से अलग होकर एक स्वतंत्र, धर्मनिरपेक्ष बांग्लादेश का निर्माण किया था।
अगस्त 2024 के विरोध प्रदर्शनों के दौरान ही कट्टरपंथ की उठा-पटक साफ दिखने लगी थी। तब शेख मुजीबुर रहमान की मूर्तियाँ तोड़ी गईं और अल्पसंख्यकों को खुलेआम निशाना बनाया गया। अब शेख हसीना की फांसी के साथ यह संदेश और स्पष्ट हो गया है कि बांग्लादेश एक बार फिर 1947 की उन शक्तियों के शिकंजे में आ चुका है, जिन्हें 1971 में पराजित माना गया था।
अवामी लीग पर प्रतिबंध और कट्टरपंथ का उभार
मोहम्मद यूनुस सरकार द्वारा अवामी लीग पर प्रतिबंध ने राजनीतिक जमीन को ही बदलकर रख दिया है। यही वह पार्टी थी जिसने बंगबंधु मुजीबुर रहमान के नेतृत्व में पाकिस्तान की क्रूर सेना से लड़ते हुए आजादी की नींव रखी थी। अब वही अवामी लीग “देशद्रोह” के आरोपों में प्रतिबंधित है और उसके नेताओं की गिरफ्तारी का सिलसिला तेज है।
पत्रकार व लेखक दीप हलदर के अनुसार, शेख हसीना के खिलाफ आंदोलन कभी सिर्फ सत्ता विरोध नहीं था। उसका मूल उद्देश्य यह तय करना था कि बांग्लादेश किस विचारधारा से चलेगा—धर्मनिरपेक्ष राष्ट्रवाद से या इस्लामी कट्टरवाद से। हसीना के पतन के साथ ही उत्तर स्पष्ट नजर आने लगा है।
जमात-ए-इस्लामी की वापसी और 50 बम धमाकों का संदेश
हसीना सरकार के पतन के बाद जमात-ए-इस्लामी और उससे जुड़े आतंकी नेटवर्क खुलकर सक्रिय हो गए हैं। जेलों में बंद कट्टरपंथी नेता रिहा किए जा चुके हैं। इसी नई हकीकत के बीच ढाका व अन्य शहरों में 50 बम धमाकों ने दुनिया को साफ संकेत दिया है—बांग्लादेश की राजनीतिक दिशा बदल चुकी है।
कई विश्लेषक इसे बांग्लादेश की “आत्मा पर सीधा हमला” बता रहे हैं, क्योंकि यह वही समूह है जिसने 1971 की मुक्ति संग्राम के दौरान पाकिस्तानी सेना के साथ मिलकर अत्याचार किए थे।
भारत के लिए बड़ी चिंता: ढाका पर पाकिस्तान की छाया
बांग्लादेश के पाकिस्तान की ओर तेजी से झुकने के संकेत अब खुलकर दिख रहे हैं। रिपोर्टों के मुताबिक, कई वरिष्ठ पाकिस्तानी जनरल और नेता हाल के महीनों में ढाका का दौरा कर चुके हैं।
यह वही बांग्लादेश है, जहां भारत ने शेख हसीना के काल में रणनीतिक, आर्थिक और सुरक्षा सहयोग में भारी निवेश किया था।
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि ढाका में पाकिस्तान समर्थक तत्व प्रभावी हो जाते हैं, तो भारत की पूर्वी सीमा की सुरक्षा, अवैध घुसपैठ और आतंकवाद संबंधी चुनौतियाँ कई गुना बढ़ सकती हैं।
क्या फिर लौट आया ‘पूर्वी पाकिस्तान’?
राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि बांग्लादेश ने भले ही 1971 में आजादी पा ली थी, लेकिन उसके भीतर “पूर्वी पाकिस्तान” की विचारधारा हमेशा जीवित रही। नौकरशाही से लेकर शिक्षित वर्ग तक, पाकिस्तान समर्थक लॉबी कभी समाप्त नहीं हो सकी।
आज वही ताकतें सत्ता के केंद्र में बैठी हैं और देश को ऐसी दिशा में ले जा रही हैं, जहाँ:
- अल्पसंख्यकों के अधिकार समाप्त हैं
- कट्टरपंथी गुट नीति निर्धारण करते हैं
- न्यायपालिका और मीडिया पर नियंत्रण बढ़ रहा है
- धर्मनिरपेक्षता को “अपराध” की तरह पेश किया जा रहा है
शेख हसीना की फांसी सिर्फ एक नेता का अंत नहीं, बल्कि 1971 में उपजी स्वतंत्र पहचान के दफन होने का प्रतीक बताया जा रहा है।