
भारत में चुनाव केवल राजनीतिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि लोकतंत्र का सबसे जीवंत उत्सव है। मतदान जनता को अपनी आवाज़ सुनाने और नीतिगत दिशा तय करने का अवसर प्रदान करता है। इस दौरान प्रशासन निष्पक्षता, सुरक्षा और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए व्यापक व्यवस्थाएँ करता है—मतदान केंद्रों की तैयारी से लेकर जागरूकता अभियानों तक। चुनाव आयोग द्वारा की गई व्यवस्थाएँ नागरिकों के भरोसे को मजबूत करती हैं। वोट देना केवल अधिकार नहीं, बल्कि एक जिम्मेदारी भी है, जो राष्ट्र के भविष्य को दिशा देती है।
✍️ — डॉ. प्रियंका सौरभ
भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, जहाँ शासन की असली शक्ति जनता के हाथों में निहित मानी जाती है। यहाँ सरकार जनता द्वारा चुनी जाती है और संविधान की स्पष्ट व्यवस्था के अनुसार यह प्रक्रिया चुनाव आयोग की निष्पक्ष संरचना और उसकी कार्यशैली द्वारा संचालित होती है। मतदाता सूची इस पूरी प्रक्रिया की आधारशिला है—क्योंकि उसी के माध्यम से नागरिक अपने मताधिकार का प्रयोग करते हैं। इसलिए मतदाता सूची की विश्वसनीयता और शुचिता लोकतंत्र की स्थिरता के लिए अत्यंत आवश्यक है। यही संदर्भ विशेष गहन पुनरीक्षण प्रक्रिया—स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (Special Intensive Revision – SIR)—को अत्यधिक महत्वपूर्ण बनाता है।
मतदाता सूची में त्रुटियाँ कई रूपों में सामने आती हैं—मृत व्यक्तियों के नाम, एक व्यक्ति का दो स्थानों पर नाम, पात्र मतदाताओं के नाम का गायब होना, या पते के परिवर्तन के बावजूद संशोधन न होना। ऐसी स्थिति चुनावों की निष्पक्षता पर प्रश्नचिह्न खड़े करती है। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 324 चुनाव आयोग को व्यापक अधिकार देता है, जिसमें चुनाव संचालन, नियंत्रण, निर्देशन और पर्यवेक्षण शामिल हैं। अतः एसआईआर केवल एक प्रशासनिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि संवैधानिक रूप से स्थापित लोकतांत्रिक दायित्व है।
1950 में संविधान लागू होने के बाद से ही चुनाव आयोग नियमित रूप से मतदाता सूची में संशोधन करता रहा है। कुछ राज्यों में एसआईआर के दौरान बड़ी मात्रा में मृतकों के नाम हटाए गए, गलत प्रविष्टियाँ सुधारी गईं, और स्थानांतरित या नए पात्र मतदाताओं को सूची में जोड़ा गया। बिहार और बंगाल में हुए पुनरीक्षणों के उदाहरण बताते हैं कि लंबे समय से निष्क्रिय पड़े नामों को हटाने से मतदाता सूची अधिक वास्तविक और पारदर्शी बन सकी। बंगाल में 7.6 करोड़ मतदाताओं की सूची में से लगभग 47 लाख नाम हटाए गए, जिससे पता चलता है कि अगर नियमित संशोधन न हो तो सूची कितनी विकृत हो सकती है।
मतदाता सूची में त्रुटियाँ केवल तकनीकी समस्या नहीं—वे चुनावी निष्पक्षता, प्रतिनिधित्व के अधिकार और जनविश्वास पर सीधा आघात करती हैं। यदि किसी नागरिक का नाम सूची से गायब है, तो वह अपने मौलिक लोकतांत्रिक अधिकार—मताधिकार—से वंचित हो जाता है। दूसरी ओर, मृतकों या स्थानांतरित लोगों के नाम बने रहने से फर्जी मतदान या राजनीतिक दुरुपयोग की आशंका बढ़ती है। इन विसंगतियों से लोकतंत्र की वैधता कमजोर होती है।
कुछ लोग एसआईआर को राजनीतिक हस्तक्षेप या सरकार द्वारा मतदाता सूचियों में हस्तक्षेप के रूप में देखने लगते हैं, जबकि यह शंका तथ्यहीन है। मतदाता सूची का शुद्धिकरण किसी दल की जीत या हार के लिए नहीं, बल्कि निष्पक्ष चुनाव प्रक्रिया के लिए आवश्यक है। चुनाव आयोग पूर्णतः स्वायत्त संस्था है और उसके निर्णय न्यायालयों द्वारा भी संरक्षित माने जाते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कई फैसलों में स्पष्ट कहा है कि निष्पक्ष चुनाव लोकतंत्र की आधारशिला है और इसके लिए मतदाता सूची की शुचिता सुनिश्चित करना अनिवार्य है।
एसआईआर के दौरान नागरिकों की सक्रिय भागीदारी भी महत्वपूर्ण है। यदि लोग स्वयं अपनी प्रविष्टियों की जाँच न करें, त्रुटियाँ सम्बंधित बूथ लेवल अधिकारियों को न बताएं, और दस्तावेज उपलब्ध न कराएं तो प्रक्रिया धीमी हो जाती है। आज भी बड़ी संख्या में ऐसे नागरिक हैं जिनके नाम गलत होने पर वे स्वयं सुधार के लिए आगे नहीं आते। यह उदासीनता लोकतंत्र को कमजोर करती है। इसलिए चुनाव आयोग ने डिजिटल साधनों—जैसे वोटर हेल्पलाइन ऐप, ऑनलाइन फॉर्म, पोर्टल—का उपयोग बढ़ाया है ताकि लोग आसानी से संशोधन कर सकें।
एसआईआर के विरोध करने वालों को यह समझना चाहिए कि यह प्रक्रिया मतदाता सूची में विसंगतियों को दूर करने, फर्जी मतदान रोकने और सही मतदाता आधार सुरक्षित करने के लिए है। जिन राज्यों में यह प्रक्रिया रोकी गई या राजनीतिक विवाद के कारण ठप हो गई, वहां मतदाता सूची में भारी त्रुटियाँ पाई गईं। ऐसे मामलों में न्यायालयों ने स्वयं दिशा-निर्देश जारी कर मतदाता सूची के शुद्धिकरण की आवश्यकता दोहराई है। अतः एसआईआर का विरोध लोकतांत्रिक मूल्यों का विरोध है।
भारत जैसे विशाल देश में जहाँ 96 करोड़ से अधिक मतदाता हैं, वहां मतदाता सूची का अद्यतन एक अत्यंत जटिल, विशाल और सतत प्रक्रिया है। इसे केवल सरकारी जिम्मेदारी मानना पर्याप्त नहीं; यह नागरिक कर्तव्य भी है। चुनाव आयोग केवल ढाँचा देता है, लेकिन उसे प्रभावी बनाने का दायित्व जनता के सहयोग पर निर्भर है। मतदाता सूची में अपनी प्रविष्टि को सही रखना उतना ही महत्वपूर्ण है जितना मतदान के दिन वोट देना।
अंततः, लोकतंत्र केवल मतदान का दिन नहीं—पूरी व्यवस्था का नाम है। इस व्यवस्था को मजबूत बनाए रखने के लिए मतदाता सूची की शुचिता सर्वोपरि है। एसआईआर यही सुनिश्चित करता है कि चुनाव निष्पक्ष, पारदर्शी और विश्वसनीय हों। यह लोकतांत्रिक प्रणाली की आत्मा को जीवित रखता है और नागरिकों के अधिकारों को सुरक्षित करता है। इसलिए मतदाता सूची के नियमित शुद्धिकरण को लेकर जागरूकता बढ़ाना, नागरिकों को भागीदारी के लिए प्रेरित करना और एसआईआर जैसी प्रक्रियाओं को सहयोग देना हर जिम्मेदार नागरिक का कर्तव्य है।