Monday, November 17

भरतपुर से फिल्मों जैसा चमत्कार: डेढ़ साल बाद ‘मरा हुआ’ समझा गया बेटा जिंदा मिला

राजस्थान के भरतपुर में सोमवार को ऐसा भावुक दृश्य देखने को मिला जिसने वहां मौजूद हर व्यक्ति की आंखें नम कर दीं। डेढ़ साल पहले जिस बेटे को परिवार ने मृत मान लिया था, वह अचानक जिंदा सामने आ गया। यह चमत्कारी मिलन ठीक किसी फिल्मी कहानी जैसा था—दर्द, बिछड़न और फिर खुशियों का तूफानी सैलाब।

मई 2024 में लापता हुआ था उमेश
उत्तराखंड के नैनीताल निवासी उमेश मानसिक स्थिति ठीक न होने के कारण मई 2024 में घर से अचानक गायब हो गया था। मां तारा देवी और बहन प्रेमा देवी ने उसे हर जगह खोजा, गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई, पर कोई सुराग नहीं मिला। समय की मार और निराशा के बीच परिवार ने मान लिया था कि उनका उमेश अब इस दुनिया में नहीं है।

जोधपुर से रेस्क्यू कर भरतपुर आश्रम लाया गया
उमेश को जोधपुर के ‘अपना घर आश्रम’ द्वारा रेस्क्यू किया गया था। 22 मई 2025 को उसकी हालत को देखते हुए उसे उपचार और देखभाल के लिए भरतपुर के अपना घर आश्रम भेजा गया। आश्रम के सचिव बसंत लाल गुप्ता के अनुसार, “लगातार काउंसलिंग और इंटरनल ट्रीटमेंट से उमेश की मानसिक स्थिति में काफी सुधार आया। कुछ दिन पहले उसने अपना घर-परिवार पहचानना शुरू किया और पता बताया। हमनें तुरंत परिवार से संपर्क किया।”

मां-बेटे का मिलन: आश्रम गूंज उठा रुलाई से
जब फोन पर परिवार को बताया गया कि उमेश ज़िंदा है तो पहले किसी को विश्वास ही नहीं हुआ। लेकिन सोमवार को जैसे ही मां तारा देवी और बहन प्रेमा देवी आश्रम पहुंचीं, उन्हें देखते ही उमेश की आंखें भर आईं। मां वहीं जमीन पर बैठकर रोने लगीं और बहन दौड़कर भाई से लिपट गई। तीनों की रुलाई पूरे आश्रम में गूंज उठी और स्टाफ से लेकर मरीजों तक, हर आंख नम हो गई।

प्रेमा देवी ने भावुक होकर कहा, “हमने हर जगह तलाश की… पुलिस में रिपोर्ट भी दर्ज कराई, लेकिन कोई सुराग नहीं मिला। हमने उम्मीद छोड़ दी थी। आज भाई मिल गया—यह हमारे लिए भगवान का सबसे बड़ा चमत्कार है।”

पहले भी हो चुके हैं ऐसे चमत्कारी मिलन
भरतपुर का अपना घर आश्रम पहले भी कई बिछड़े परिवारों को मिलवा चुका है। 2015 में असम की एक महिला यहां मिली थीं, जिन्हें उनका बेटा वर्षों पहले मृत मान चुका था। जब बेटा खबर सुनकर यहां पहुंचा, तो मां-बेटे का मिलन देखकर हर कोई भावुक हो उठा।

मानवता की मिसाल है ‘अपना घर आश्रम’
उमेश का अपने परिवार से मिलना केवल एक भावनात्मक क्षण नहीं, बल्कि यह इस बात का प्रमाण भी है कि संवेदनशीलता, देखभाल और सही उपचार किसी भी भटके जीवन को वापस राह पर ला सकते हैं।

भरतपुर में हुआ यह चमत्कार एक बार फिर साबित करता है—
“जहां उम्मीद खत्म होती दिखती है, वहीं भगवान नई राह दिखा देता है।”

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