
नई दिल्ली: क्रिकेट की दुनिया में कुछ खिलाड़ी ऐसे होते हैं, जिनका करियर छोटा लेकिन प्रभाव अमिट होता है। भारतीय क्रिकेट के पूर्व लेग स्पिनर लक्ष्मण शिवरामाकृष्णन ऐसे ही खिलाड़ी थे, जिनका जन्म आज, 31 दिसंबर 1965 को हुआ था। उन्हें एक समय दुनिया का सबसे बेहतरीन लेग स्पिनर माना गया, लेकिन उनका टेस्ट करियर महज 9 मैचों तक ही सीमित रहा।
17 साल की उम्र में टेस्ट डेब्यू
शिवरामाकृष्णन ने 1982-83 में महज 17 साल की उम्र में वेस्टइंडीज के खिलाफ टेस्ट डेब्यू किया। यह डेब्यू उन्हें भारत की धरती पर नहीं बल्कि कैरेबियाई बल्लेबाजों के गढ़ एंटिगुआ में मिला, जहां उन्होंने पहले टेस्ट में 25 ओवर फेंके, 95 रन लुटाए और बिना विकेट लिए लौट आए।
इंग्लैंड के खिलाफ धमाका
अपने दूसरे टेस्ट में शिवरामाकृष्णन ने वानखेड़े स्टेडियम, मुंबई में इंग्लैंड के खिलाफ 12 विकेट चटकाए। तीसरे टेस्ट में उन्होंने 7 और विकेट लिए। महज तीन मैचों में 19 विकेट लेकर वह पूरी दुनिया में मशहूर हो गए। लेकिन इसके बाद अगले 6 टेस्ट में केवल 7 विकेट ही ले पाए और 20 साल की उम्र में उनका टेस्ट करियर समाप्त हो गया।
सचिन तेंदुलकर को वार्न का तोड़ सिखाया
रिटायरमेंट के बाद शिवरामाकृष्णन चेन्नई में एमआरएफ पेस फाउंडेशन से जुड़े और स्पिनरों को तराशने लगे। 1998 में, ऑस्ट्रेलिया के दौरे से पहले सचिन तेंदुलकर ने शेन वार्न की लेग स्पिन से निपटने के लिए उनकी मदद मांगी। शिवरामाकृष्णन ने पिच पर रफ पैच बनवाए और सचिन के साथ रोजाना घंटों तक चार दिन तक प्रैक्टिस की।
सचिन का कमाल और वार्न का खौफ
इस प्रैक्टिस के बाद सचिन ने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ चेपक टेस्ट की दूसरी पारी में 155 नॉटआउट रन बनाए, जिसमें उन्होंने वार्न पर जोरदार छक्के भी लगाए। इस घरेलू सीरीज में सचिन ने दो शतक लगाए और कुल 446 रन बनाए, जिससे टीम इंडिया को जीत हासिल हुई। वार्न पर सचिन का खौफ इतना बढ़ा कि उन्होंने बाद में कहा, “रात को सपने में भी मुझे सचिन तेंदुलकर दिखाई देते हैं।”
लक्ष्मण शिवरामाकृष्णन का क्रिकेट जीवन भले ही छोटा रहा हो, लेकिन उनके योगदान और उनके जादुई लेग स्पिन ने भारतीय क्रिकेट में अमिट छाप छोड़ी है।