
अफ्रीका के रणनीतिक क्षेत्र सोमालीलैंड को इज़रायल द्वारा मान्यता दिए जाने के बाद पश्चिम एशिया और अफ्रीका की भू-राजनीति में नया तनाव उभर आया है। इज़रायल के इस कदम से तुर्की समेत कई मुस्लिम देशों में नाराज़गी देखी जा रही है। माना जा रहा है कि इज़रायल के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करने के लिए तुर्की अब सोमालिया में सैन्य और नौसैनिक अड्डा स्थापित करने की दिशा में गंभीरता से विचार कर रहा है।
विशेषज्ञों के अनुसार, तुर्की राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन सोमालिया के लास कोराय क्षेत्र में सैन्य बेस बनवाकर लाल सागर और अदन की खाड़ी में अपनी रणनीतिक मौजूदगी मजबूत करना चाहते हैं।
इज़रायल के फैसले से इस्लामिक दुनिया में असंतोष
इज़रायल सोमालीलैंड को मान्यता देने वाला दुनिया का पहला देश बन गया है। सोमालीलैंड, मुस्लिम बहुल देश सोमालिया का हिस्सा रहा है, लेकिन 1990 के दशक से यह क्षेत्र व्यावहारिक रूप से सोमालिया के नियंत्रण से बाहर है।
इज़रायल के इस फैसले का तुर्की, पाकिस्तान और सऊदी अरब सहित कई मुस्लिम देशों ने विरोध किया है। इन देशों का मानना है कि यह कदम न केवल क्षेत्रीय अस्थिरता बढ़ाएगा, बल्कि अफ्रीका में शक्ति संतुलन को भी प्रभावित करेगा।
तुर्की की नजर लाल सागर पर
तुर्की लंबे समय से लाल सागर क्षेत्र में अपनी रणनीतिक पकड़ मजबूत करना चाहता है। अब इज़रायल–सोमालीलैंड डील के बाद तुर्की को सोमालिया में सैन्य अड्डा बनाने का अवसर मिल सकता है।
विशेषज्ञों का कहना है कि तुर्की ने बीते 13 वर्षों में सोमालिया में बड़े पैमाने पर निवेश किया है और दोनों देशों के संबंध मजबूत रहे हैं। ऐसे में सोमालिया सरकार तुर्की के इस प्रस्ताव पर सकारात्मक रुख अपना सकती है।
मंगलवार को तुर्की के राष्ट्रपति की सोमालिया के राष्ट्रपति से होने वाली मुलाकात को बेहद अहम माना जा रहा है। इस बैठक में सैन्य और नौसैनिक अड्डे को लेकर ठोस समझौता होने की संभावना जताई जा रही है।
अफ्रीका में बढ़ती शक्ति प्रतिस्पर्धा
कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि इज़रायल का यह कदम हूती विद्रोहियों की गतिविधियों पर नजर रखने और लाल सागर में अपनी सुरक्षा मजबूत करने की रणनीति का हिस्सा है। वहीं, तुर्की और यूएई पहले से ही अफ्रीका के हॉर्न क्षेत्र में अपना प्रभाव बढ़ाने में जुटे हैं।
तुर्की का सोमालिया में सैन्य अड्डा बनने से उसे सीधे लाल सागर तक पहुंच मिल जाएगी, जो वैश्विक व्यापार और सैन्य रणनीति के लिहाज से अत्यंत महत्वपूर्ण क्षेत्र है।
क्या है सोमालीलैंड का मामला
सोमालीलैंड हॉर्न ऑफ अफ्रीका में स्थित है और खुद को एक स्वतंत्र राष्ट्र मानता है, हालांकि इज़रायल के अलावा अभी तक किसी भी देश ने इसे आधिकारिक मान्यता नहीं दी है।
यह क्षेत्र पहले ब्रिटिश सोमालीलैंड था, जो 1960 में स्वतंत्र हुआ और बाद में इतालवी सोमालीलैंड के साथ मिलकर सोमालिया बना। 1991 में सोमालिया में गृहयुद्ध के बाद सोमालीलैंड ने खुद को अलग घोषित कर लिया।
बीते तीन दशकों में सोमालीलैंड ने अपना अलग प्रशासन, संसद, संविधान, मुद्रा और सुरक्षा तंत्र विकसित किया है। सोमालिया की तुलना में यहां अपेक्षाकृत स्थिरता रही है, जबकि सोमालिया अल-शबाब जैसे आतंकी संगठनों की हिंसा से जूझता रहा है।
भारत का रुख
भारत समेत अधिकांश देश सोमालिया की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का समर्थन करते हैं और सोमालीलैंड को अलग देश के रूप में मान्यता नहीं देते। भारत अफ्रीकी संघ की नीति के अनुरूप संतुलित और सावधान रुख अपनाए हुए है।
बदलती लाल सागर राजनीति
विशेषज्ञों का मानना है कि इज़रायल द्वारा सोमालीलैंड को मान्यता देना और इसके जवाब में तुर्की की सैन्य तैयारियां लाल सागर और हॉर्न ऑफ अफ्रीका की राजनीति को नया मोड़ दे सकती हैं। आने वाले समय में यह क्षेत्र वैश्विक शक्तियों की रणनीतिक प्रतिस्पर्धा का बड़ा केंद्र बन सकता है।