Monday, December 29

इस्लाम के नाम पर भारत के पड़ोसियों को फांस रहा तुर्की, खलीफा का दक्षिण एशिया में नापाक ‘ऑटोमन’ प्लान

 

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अंकारा/नई दिल्ली: तुर्की का दक्षिण एशिया में बढ़ता प्रभाव अब सिर्फ भूराजनीतिक नहीं रह गया है, बल्कि इस्लाम के नाम पर भावनात्मक और रणनीतिक खेल में बदल गया है। इतिहास गवाह है कि 16वीं सदी में ओटोमन साम्राज्य ने पुर्तगालियों और सफवी ईरान के खिलाफ संतुलन बनाने के लिए भारतीय शक्तियों से गठजोड़ किया था। उस समय तुर्की ने बाबर को तोपें और बारूद मुहैया कराकर मुगल साम्राज्य की नींव रखने में मदद की थी।

 

आज, ओटोमन साम्राज्य के उत्तराधिकारी तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप एर्दोगन वही रणनीति दोहराने में जुटे हैं। भारत के पड़ोसी मुस्लिम देशों—पाकिस्तान, बांग्लादेश, मालदीव और अजरबैजान—के साथ करीबी संबंध बना कर वे क्षेत्र की भूराजनीति पर अपना प्रभाव बढ़ा रहे हैं। भारतीय खुफिया एजेंसियों के अनुसार, 10 नवंबर को लाल किले पर हुए बम धमाके में तुर्की की विचारधारा और उसके हैंडलर की भूमिका सामने आई थी।

 

इतिहास में भारत और ओटोमन साम्राज्य के संबंधों ने मुस्लिम समुदाय के लिए गहरा प्रभाव छोड़ा है। मुगल सत्ता के दौरान और खिलाफत आंदोलन में ओटोमन खलीफा भारतीय मुसलमानों के लिए एक प्रतीक बने। यही भावनात्मक आधार आज तुर्की की नई दक्षिण एशिया नीति का केंद्र है।

 

विशेषज्ञों का मानना है कि एर्दोगन की रणनीति दो मुख्य उद्देश्यों से प्रेरित है—पहला, उपमहाद्वीप की बड़ी मुस्लिम आबादी के साथ संबंध बनाकर अपनी वैश्विक प्रतिष्ठा और प्रभाव बढ़ाना। दूसरा, पाकिस्तान जैसे देशों के साथ सुरक्षा और राजनयिक गठजोड़ करके भारत और ईरान जैसे क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्वियों को संतुलित करना।

 

तुर्की की इस चाल से न केवल क्षेत्रीय राजनीति में जटिलताएं बढ़ रही हैं, बल्कि भारत के लिए नई सुरक्षा और कूटनीतिक चुनौतियां भी उत्पन्न हो रही हैं। दक्षिण एशिया में इस्लाम के नाम पर तुर्की की घुसपैठ एक गंभीर चेतावनी बनती जा रही है।

 

 

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