
पटना: राष्ट्रीय लोक मोर्चा (RLM) के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा के आवास पर आयोजित ‘लिट्टी-चोखा भोज’ राजनीतिक चर्चा का केंद्र बन गया। उम्मीद थी कि इस अनौपचारिक मिलन से पार्टी मजबूत होगी, लेकिन पार्टी के तीन प्रमुख विधायक माधव आनंद, रामेश्वर महतो और आलोक सिंह भोज में शामिल नहीं हुए। इसके बजाय, तीनों ने दिल्ली का रुख किया और भाजपा के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष नितिन नबीन से मुलाकात की। इस घटनाक्रम ने बिहार की राजनीति में सवाल खड़ा कर दिया है—क्या कुशवाहा की पार्टी टूटने की कगार पर है?
परिवारवाद और मंत्री पद को लेकर असंतोष:
सूत्रों के अनुसार, रामेश्वर महतो को उम्मीद थी कि कुशवाहा उन्हें मंत्री पद दिलाएंगे। लेकिन कुशवाहा ने अपने बेटे दीपक प्रकाश को मंत्री और पत्नी को टिकट दिलाकर विधायक बनवाया। इस ‘परिवारवाद’ ने पार्टी के वरिष्ठ नेताओं में असंतोष पैदा कर दिया। महतो ने हाल ही में सोशल मीडिया पर अपनी नाराजगी जताते हुए लिखा कि जब नेतृत्व की नीयत ‘धुंधली’ हो और नीतियां जनहित के बजाय स्वार्थ की ओर मुड़ें, तो जनता भ्रमित नहीं हो सकती।
बीजेपी से मुलाकात: शिष्टाचार या बड़ी बगावत?
भाजपा ने इसे औपचारिक भेंट बताया है, लेकिन राजनीतिक जानकार इसे हल्के में नहीं ले रहे। तीनों विधायकों का एकजुट होकर दिल्ली जाना और पार्टी के आधिकारिक भोज का बहिष्कार करना साफ राजनीतिक संकेत माना जा रहा है।
कुशवाहा की चुप्पी और भविष्य के सवाल:
फिलहाल उपेंद्र कुशवाहा और बागी विधायकों की ओर से कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि ये तीनों विधायक एक साथ पार्टी छोड़ते हैं, तो RLM के लिए यह बड़ा अस्तित्वगत संकट होगा। सवाल यह है कि क्या ये विधायक किसी नई पार्टी में शामिल होंगे या भाजपा के गठबंधन का हिस्सा बनेंगे।