
नई दिल्ली। 25 दिसंबर को पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती पर याद किया जा रहा है कि उन्होंने 1998 में एक साहसिक और दूरगामी निर्णय लेकर भारत को परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र बनाया। 11 मई 1998 को दोपहर 3 बजकर 45 मिनट पर राजस्थान के पोखरण में भारत ने अपनी सामरिक आत्मनिर्भरता की नई इबारत लिखी।
बिना विदेशी सहयोग और दबाव के भारत का परमाणु परीक्षण
प्रधानमंत्री वाजपेयी ने बिना किसी विदेशी मदद के और अंतरराष्ट्रीय दबाव, खासकर अमेरिका की निगरानी के बावजूद परमाणु परीक्षण को मंजूरी दी। यह निर्णय तत्काल आलोचना झेलने के बावजूद भारत के भविष्य की सुरक्षा और आत्मसम्मान की नींव बना। यह केवल एक विस्फोट नहीं था, बल्कि भारत की सामरिक संप्रभुता और आत्मनिर्भरता की घोषणा थी।
13 पार्टियों की मिली-जुली सरकार में लिया गया साहसिक फैसला
उस समय वाजपेयी की सरकार 13 पार्टियों की मिली-जुली सरकार थी। सत्ता में लौटने के कुछ ही दिन बाद उन्होंने वैज्ञानिकों को परीक्षण की तैयारी के निर्देश दिए। डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम और डॉ. चिदंबरम ने परीक्षण की रणनीति तैयार की, जिसे ऑपरेशन ‘शक्ति’ का कोड नाम दिया गया।
गोपनीयता और सुरक्षा के बीच किया गया आयोजन
पोखरण में परीक्षण की तैयारियां रात में की गईं ताकि अमेरिकी सैटेलाइट्स की नजर न पड़े। वैज्ञानिकों और सैन्य कर्मियों के कोड नेम और अलग-अलग समय पर यात्रा करने की व्यवस्था की गई। दोपहर 3.45 बजे, पहला बम फोड़ा गया, और भारत ने दुनिया को संदेश दिया कि अब वह स्वयं की सुरक्षा के लिए पूरी तरह सक्षम है।
वाजपेयी की दूरदर्शिता और भारत का सामरिक आत्मसम्मान
एपीजे अब्दुल कलाम के अनुसार, वाजपेयी का यह निर्णय भारत को परमाणु हथियार संपन्न राष्ट्र बनाने में निर्णायक साबित हुआ। इस साहसिक कदम ने भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सम्मान दिलाया और यह साबित किया कि देश अपनी सुरक्षा के मामलों में किसी पर निर्भर नहीं रहेगा।