Tuesday, December 23

भगवद् गीता कोई धार्मिक ग्रंथ नहीं, योग और वेदांत शिक्षा देने वाला ट्रस्ट FCRA रजिस्ट्रेशन से वंचित नहीं

 

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नई दिल्ली। मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में गृह मंत्रालय के फैसले को खारिज कर दिया और स्पष्ट किया कि भगवद् गीता किसी एक धर्म तक सीमित नहीं है। अदालत ने अर्शा विद्या परंपरा ट्रस्ट को FCRA पंजीकरण देने से इनकार करने वाले मंत्रालय के निर्णय को अपर्याप्त तर्क और प्रक्रियात्मक खामियों के आधार पर रद्द कर दिया।

 

क्या था मामला:

अर्शा विद्या परंपरा ट्रस्ट, जो वेदांत, योग, संस्कृत और प्राचीन पांडुलिपियों के संरक्षण का कार्य करता है, ने 2021 में FCRA पंजीकरण के लिए आवेदन किया था। मंत्रालय ने जनवरी 2025 में आवेदन खारिज कर दिया और मुख्य कारण बताया कि ट्रस्ट धार्मिक प्रतीत होता है।

 

कोर्ट का तर्क:

जस्टिस जी.आर. स्वामीनाथन ने कहा कि भगवद् गीता एक नैतिक और दार्शनिक ग्रंथ है, धार्मिक ग्रंथ नहीं, और इसे किसी धर्म तक सीमित नहीं किया जा सकता। वेदांत और योग का शिक्षण देने से कोई संगठन धार्मिक संस्था नहीं बन जाता। अदालत ने मंत्रालय की यह तर्क भी खारिज की कि ट्रस्ट को 9 लाख रुपये के विदेशी योगदान मिलने के कारण आवेदन अस्वीकार किया जा सकता है।

 

प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन:

अदालत ने नोट किया कि अंतिम चरण में नए आरोप लगाए बिना ट्रस्ट को जवाब देने का अवसर दिए बिना आवेदन अस्वीकार करना प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन है।

 

आदेश:

हाईकोर्ट ने गृह मंत्रालय को निर्देश दिया है कि वह तीन महीने के भीतर ट्रस्ट के FCRA आवेदन पर पुनर्विचार करे और यदि कोई ठोस सबूत हो तो विस्तृत नोटिस जारी करे।

 

निष्कर्ष:

इस निर्णय से स्पष्ट हो गया है कि भगवद् गीता और योग जैसी शिक्षाओं का उद्देश्य सांस्कृतिक, शैक्षिक और कल्याणकारी है, न कि केवल धार्मिक, और ऐसे संस्थाओं को FCRA पंजीकरण से वंचित नहीं किया जा सकता।

 

 

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