
नई दिल्ली: भारत जगुआर स्ट्राइक विमान का एकमात्र संचालक बन चुका है और अब ओमान से पुराने जगुआर जेट के पुर्जे खरीदकर अपने हवाई बेड़े को मजबूत करने जा रहा है। ये कदम भारतीय वायुसेना के घटते लड़ाकू बेड़े और नए उपकरणों की खरीद में देरी को भी दर्शाता है।
ओमान ने 1977 से लेकर अब तक कुल 27 ब्रिटिश निर्मित जगुआर विमान प्राप्त किए थे, जिनमें से कम से कम 13 दुर्घटनाओं में शामिल हो चुके हैं। भारत को अब इन पुराने विमानों से केवल सही सलामत पुर्जे मिलेंगे, जिन्हें मौजूदा जगुआर विमानों की मरम्मत और मेंटेनेंस के लिए इस्तेमाल किया जाएगा।
इतिहास और पृष्ठभूमि: भारतीय वायुसेना ने 1978 में डीप पेनिट्रेशन स्ट्राइक एयरक्राफ्ट (DPSA) के लिए जगुआर को अपनाया था। भारत ने ब्रिटिश एयरोस्पेस से 40 विमान सीधे प्राप्त किए और लगभग 128 विमान HAL के साथ लाइसेंस के तहत भारत में बनाए गए। लेकिन अब नए या मरम्मत किए गए पुर्जों की उपलब्धता मुश्किल हो गई है।
ओमान से आने वाले पुर्जों का इस्तेमाल: रिपोर्ट के अनुसार, ओमान के ये विमान भारतीय वायुसेना में शामिल नहीं होंगे। बल्कि इन्हें ओमान में ही तोड़कर भारत लाया जाएगा। इन पुर्जों से भारतीय जगुआर विमानों की सेवा जीवन बढ़ाई जाएगी और मौजूदा छह स्क्वाड्रनों में मजबूती आएगी।
फ्रांस की मदद: जगुआर के कलपुर्जे दुनिया में मिलने मुश्किल हो रहे हैं। भारत ने 2018-19 में फ्रांस से मदद मांगी थी, जब उसे 31 पूर्ण विमान ढांचे और विभिन्न कलपुर्जे मिले। इसके लिए भारत ने केवल परिवहन लागत का भुगतान किया।
हालात: भारत में आखिरी नया जगुआर विमान HAL द्वारा 2008 में बनाया गया था। तब से नए विमान निर्माण या पुर्जों की प्राप्ति अत्यंत जटिल हो गई है। इस कदम से भारतीय वायुसेना को अपने स्ट्राइक बेड़े की मजबूती और ऑपरेशनल क्षमता बढ़ाने में मदद मिलेगी।