
नई दिल्ली। दिल्ली-एनसीआर में सर्दियों के दौरान गंभीर होती वायु प्रदूषण की समस्या पर सुप्रीम कोर्ट ने कड़ा रुख अपनाते हुए कहा है कि अमीर वर्ग अपनी जीवनशैली बदलने को तैयार नहीं है, जिसके चलते प्रदूषण पर नियंत्रण के प्रयास प्रभावी नहीं हो पा रहे हैं। अदालत ने स्पष्ट किया कि जब सुविधा के नाम पर बड़े और ज्यादा प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों, डीजल जनरेटर और अन्य उपकरणों का इस्तेमाल किया जाता है, तो उसका खामियाजा पूरे समाज को भुगतना पड़ता है।
मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली पीठ—जिसमें जस्टिस जॉयमाल्या बागची और जस्टिस विपुल एम. पंचोली शामिल हैं—ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा समय-समय पर कई निर्देश जारी किए गए, फिर भी स्थिति जस की तस बनी हुई है। कोर्ट ने सवाल उठाया कि जब आदेशों का पालन ही नहीं होता, तो समाधान कैसे निकलेगा। अदालत ने जोर देकर कहा कि अब व्यावहारिक और सख्ती से लागू होने वाले आदेश देने की जरूरत है।
‘अमीर वर्ग नियमों का उल्लंघन कर रहा’
पीठ ने टिप्पणी की कि अमीर वर्ग नियमों का पालन नहीं करता और बड़ी-बड़ी डीजल खपत वाली कारें, निजी जनरेटर और अन्य प्रदूषणकारी साधनों का धड़ल्ले से इस्तेमाल करता है। इसका सीधा असर राजधानी और आसपास के क्षेत्रों की हवा पर पड़ता है। कोर्ट ने कहा कि गरीब और मेहनतकश वर्ग ही सबसे अधिक प्रदूषण की चपेट में आता है और स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से सबसे ज्यादा प्रभावित होता है।
आंकड़ों ने खोली सच्चाई
पिछले सप्ताह कोर्ट में दाखिल हलफनामे में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) ने बताया कि दिल्ली-एनसीआर के प्रदूषण में
- 41% योगदान परिवहन क्षेत्र का,
- 21% धूल और निर्माण कार्यों का,
- 19% उद्योगों का,
- 5% बिजली संयंत्रों का,
- 3% घरेलू स्रोतों का
और 11% अन्य कारणों का है।
आयोग ने यह भी स्पष्ट किया कि ये कारण पूरे साल सक्रिय रहते हैं, जबकि पराली जलाने की समस्या सीमित अवधि की है।
बच्चों पर सबसे ज्यादा असर
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने बच्चों के स्वास्थ्य को लेकर भी गंभीर चिंता जताई। सहायक वकील ने बताया कि कोर्ट के निर्देशों के बावजूद कुछ स्कूल और संगठन प्रदूषण के गंभीर स्तर के बीच खेलकूद और अन्य कार्यक्रम आयोजित कर रहे हैं। कोर्ट ने कहा कि बच्चे सबसे ज्यादा प्रदूषण से प्रभावित होते हैं और उनके स्वास्थ्य से कोई समझौता स्वीकार्य नहीं है।
न्यायिक समय की बचत पर जोर
एक अन्य याचिका पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि एक ही मुद्दे पर अलग-अलग याचिकाओं से न्यायिक समय नष्ट होता है। सभी वकीलों को निर्देश दिया गया कि वे अपने सुझाव एमिकस क्यूरी को दें, ताकि सभी मुद्दे एक साथ अदालत के समक्ष रखे जा सकें।
संदेश साफ: जनता की भागीदारी जरूरी
सुप्रीम कोर्ट ने संकेत दिया कि प्रदूषण केवल सरकारी नीति की समस्या नहीं, बल्कि सामाजिक जिम्मेदारी का भी सवाल है। जब तक लोग—खासकर संपन्न वर्ग—अपनी आदतें नहीं बदलेंगे, तब तक दिल्ली-एनसीआर को प्रदूषण से राहत मिलना मुश्किल है। अदालत का स्पष्ट संदेश है कि पहल सरकार के साथ-साथ जनता को भी करनी होगी, तभी स्वच्छ हवा का सपना साकार हो सकेगा।