
रांची। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से जुड़े एक विवादित घटनाक्रम पर प्रतिक्रिया देते हुए झारखंड के स्वास्थ्य मंत्री इरफान अंसारी द्वारा दी गई नौकरी की पेशकश अब सियासी बहस का विषय बन गई है। सत्तारूढ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) ने मंत्री के बयान से खुद को अलग करते हुए स्पष्ट किया है कि किसी मंत्री को तीन लाख रुपये मासिक वेतन वाली नौकरी देने का कोई संवैधानिक या कानूनी अधिकार नहीं है।
जेएमएम के प्रवक्ता मनोज पांडे ने कहा कि मंत्री का बयान पूरी तरह व्यक्तिगत था और पार्टी की आधिकारिक नीति या निर्णय से उसका कोई संबंध नहीं है। उन्होंने कहा, “मुझे नहीं लगता कि कोई मंत्री अपने स्तर पर इस तरह की नौकरी देने का अधिकार रखता है। हालांकि जिस मूल मुद्दे को दबाया जा रहा है, उस पर चर्चा जरूर होनी चाहिए।”
क्या था पूरा मामला
दरअसल, स्वास्थ्य मंत्री इरफान अंसारी ने हाल ही में जामताड़ा में एक सार्वजनिक बयान में कहा था कि वह पटना में कथित तौर पर अपमानित की गई मुस्लिम महिला आयुष डॉक्टर नुसरत परवीन को झारखंड आने का न्योता दे रहे हैं। मंत्री ने दावा किया था कि उन्हें झारखंड में तीन लाख रुपये मासिक वेतन, सरकारी फ्लैट, मनचाहा पदस्थापन और पूर्ण सुरक्षा के साथ नौकरी दी जाएगी।
इस बयान के बाद राजनीतिक गलियारों में हलचल तेज हो गई। विपक्ष ने इसे “लोकलुभावन और गैर-जिम्मेदाराना बयान” बताया, वहीं अब खुद सत्तारूढ़ दल ने भी इससे किनारा कर लिया है।
पटना की घटना से जुड़ा विवाद
यह पूरा विवाद 15 दिसंबर को पटना में हुए एक कार्यक्रम से जुड़ा है, जहां नव-नियुक्त आयुष डॉक्टरों को नियुक्ति पत्र दिए जा रहे थे। इसी दौरान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने नुसरत परवीन के चेहरे से नकाब हटाया, जिस पर देशभर में तीखी प्रतिक्रियाएं सामने आईं। कई संगठनों और नेताओं ने इसे मुस्लिम परंपराओं का अपमान बताया।
नुसरत परवीन कोलकाता की रहने वाली हैं और वह उन दस आयुष डॉक्टरों में शामिल थीं, जिन्हें उस दिन नियुक्ति पत्र मिला था।
राजनीति गरम, आरोप-प्रत्यारोप तेज
इस मामले में भाजपा के पूर्व मंत्री सीपी सिंह ने भी विवादित बयान देते हुए महिला डॉक्टर के कथित संबंधों को लेकर सवाल उठाए और पूरे मामले की एनआईए जांच की मांग कर दी। उनके बयान के बाद राजनीतिक माहौल और ज्यादा गरमा गया।
निष्कर्ष
इरफान अंसारी का बयान जहां मानवीय संवेदना के रूप में सामने आया, वहीं उसकी कानूनी और प्रशासनिक वास्तविकता ने अब उसे सवालों के घेरे में ला खड़ा किया है। जेएमएम की दूरी बनाने के बाद यह स्पष्ट हो गया है कि मंत्री का ऑफर न तो सरकारी था और न ही लागू करने योग्य। अब यह मामला केवल प्रशासनिक नहीं, बल्कि पूरी तरह राजनीतिक बन चुका है।