
केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादवने अरावली में खनन और संरक्षण को लेकर उठ रहे विवाद पर स्पष्ट बयान दिया है। उन्होंने कहा कि अरावली में कोई भी नियम शिथिल नहीं किया गया है और 90 फीसदी से अधिक क्षेत्र पूरी तरह संरक्षित है। केंद्रीय मंत्री ने कुछ यूट्यूब चैनल्स और व्यक्तियों द्वारा फैलाए जा रहे भ्रम को दूर करते हुए ‘100 मीटर’ सुरक्षा मापदंड पर साफ किया कि इसका मतलब केवल पहाड़ी की ऊपरी सतह नहीं, बल्कि आधार से ऊपर 100 मीटर तक का पूरा क्षेत्र संरक्षित रहेगा।
100 मीटर का सुरक्षा क्षेत्र स्पष्ट किया
भूपेंद्र यादव ने कहा कि कुछ लोग गलत प्रचार कर रहे हैं कि 100 मीटर का अर्थ केवल पहाड़ी के ऊपर से नीचे की खुदाई की अनुमति है, जो पूरी तरह गलत है। उन्होंने स्पष्ट किया कि 100 मीटर का माप पहाड़ी के आधार से ऊपर की ओर लिया जाता है और इसमें दोनों पहाड़ियों के बीच की जमीन भी शामिल है। इसका मतलब है कि केवल पहाड़ ही नहीं, बल्कि उनके बीच का क्षेत्र भी संरक्षण के दायरे में आएगा।
90 फीसदी क्षेत्र अब संरक्षित
केंद्रीय मंत्री ने बताया कि लागू नियमों के बाद अरावली का 90 फीसदी से अधिक क्षेत्र संरक्षित क्षेत्र में शामिल हो गया है। दिल्ली के अरावली क्षेत्र में कोई भी माइनिंग गतिविधि मान्य नहीं है। सरकार पिछले दो साल से ग्रीन अरावली पहल चला रही है और सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के तहत संरक्षण को सुनिश्चित कर रही है।
सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का समर्थन
भूपेंद्र यादव ने कहा कि सरकार का उद्देश्य विकास रोकना नहीं है, बल्कि प्राकृतिक विरासत, पर्यावरण संतुलन और भविष्य की पीढ़ियों की सुरक्षा सुनिश्चित करना है। उन्होंने कहा कि जमीन के नीचे से ऊपर 100 मीटर तक का क्षेत्र पूरी तरह से संरक्षित रहेगा और अवैध खनन पर सख्त रोक लगेगी।
प्रदेशों में संरक्षण पर निगरानी
अरावली चार राज्यों—दिल्ली, राजस्थान, हरियाणा और गुजरात—में फैला है और कुल 39 जिलों में विस्तारित है। दिल्ली में कोई भी माइनिंग मान्य नहीं है और लगभग 20 से अधिक फॉरेस्ट रिजर्व प्रोटेक्टेड एरिया बनाए गए हैं, जिन पर निगरानी रखी जा रही है।
भूपेंद्र यादव ने दोहराया कि ग्रीन अरावली पहल और सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का सरकार पूरी तरह समर्थन करती है
और यह नीति अरावली की सुरक्षा और संरक्षण के लिए निर्णायक साबित होगी।