
नई दिल्ली: अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपये में रिकॉर्ड गिरावट ने आम उपभोक्ताओं से लेकर उद्योग जगत तक चिंताएं बढ़ा दी हैं। बुधवार को रुपया पहली बार 90 रुपये प्रति डॉलर के पार चला गया। विशेषज्ञों का कहना है कि विदेशी निवेश में कमी, कच्चे तेल की ऊंची कीमतें और भारत-अमेरिका व्यापार वार्ता में अनिश्चितता इस गिरावट के मुख्य कारण रहे। अधिकांश समय आरबीआई के हस्तक्षेप न करने से भी मुद्रा बाजार पर दबाव बढ़ा।
रुपये की कमजोरी का असर केवल फॉरेक्स बाजार तक सीमित नहीं रहेगा। इसका सीधा प्रभाव आयातित वस्तुओं, ईंधन, इलेक्ट्रॉनिक सामान, विदेशी शिक्षा और घरेलू बजट पर पड़ेगा।
आयात महंगा, घरेलू बजट पर बढ़ेगा बोझ
भारत अपनी 90% तेल जरूरतें और बड़ी मात्रा में इलेक्ट्रॉनिक्स, उर्वरक व खाद्य तेल आयात करता है। रुपये के कमजोर होने पर इन सभी सामानों के लिए अधिक डॉलर चुकाने पड़ते हैं, जिससे कीमतें स्वतः बढ़ जाती हैं।
क्या-क्या हो सकता है महंगा?
- स्मार्टफोन, लैपटॉप, टीवी, फ्रिज जैसे इलेक्ट्रॉनिक सामान
- कारें, बाइक और उनके स्पेयर पार्ट्स
- पेट्रोल, डीजल और एलपीजी
- खाद्य तेल और आयातित खाद्यान्न
विशेषज्ञों का कहना है कि रुपये का मौजूदा स्तर उपभोग आधारित घरेलू अर्थव्यवस्था पर दबाव बढ़ा सकता है, खासकर निम्न और मध्यम आय वर्ग के परिवारों के लिए।
विदेश में पढ़ाई भी होगी महंगी
रुपये की कमजोरी का सबसे तेज असर उन छात्रों पर पड़ेगा जो डॉलर में फीस चुकाते हैं।
उदाहरण के लिए, 50,000 डॉलर की ट्यूशन फीस:
- पहले (80 रुपये प्रति डॉलर पर): 40 लाख रुपये
- अब (90 रुपये प्रति डॉलर पर): 45 लाख रुपये
यानी 5 लाख रुपये का सीधा इजाफा, जो कई परिवारों की कई महीनों की पूरी कमाई के बराबर है।
एजुकेशन लोन की ईएमआई भी रुपये में 12–13% तक बढ़ सकती है।
रुपये में गिरावट के प्रमुख कारण
1. भारत-अमेरिका व्यापार तनाव
हाल की वार्ताएं निष्कर्षहीन रहीं और अमेरिका ने कई भारतीय निर्यात उत्पादों पर टैरिफ 50% तक बढ़ा दिया, जिससे निवेशकों का भरोसा कमजोर हुआ।
2. विदेशी निवेशकों का पलायन
साल 2025 में एफपीआई ने भारतीय बाजार से 17 अरब डॉलर निकाल लिए, जिससे रुपये पर भारी दबाव पड़ा।
3. आरबीआई की मुद्रा नीति में बदलाव
आईएमएफ ने भारत की विनिमय दर व्यवस्था को ‘स्थिर’ से बदलकर ‘crawl-like’ श्रेणी में रखा है, अर्थात RBI अब रुपये की मजबूती के लिए आक्रामक हस्तक्षेप नहीं कर रहा।
किसके लिए फायदेमंद?
रुपये की गिरावट से भारत आने वाले remittances में बढ़ोतरी होगी।
अब यदि कोई प्रवासी भारतीय 500 डॉलर भेजता है, तो पहले जहां लगभग 40,000 रुपये मिलते थे, अब 45,000 रुपये मिलेंगे।
भारत ने वर्ष 2024 में 137–138 अरब डॉलर की विदेशी मुद्रा प्राप्त की थी, जो दुनिया में सबसे अधिक है।