
नई दिल्ली: केंद्र सरकार के हाल ही में जारी किए गए दो बड़े आदेशों ने टेक इंडस्ट्री में हलचल मचा दी है। 28 नवंबर को डिपार्टमेंट ऑफ टेक्नोलॉजी (DoT) ने WhatsApp, Telegram जैसे मैसेजिंग ऐप्स के लिए सिम-बाइंडिंग का आदेश दिया। इसके साथ ही स्मार्टफोन कंपनियों को ‘संचार साथी’ ऐप को पहले से इंस्टॉल करके ही फोन बेचने का निर्देश दिया गया।
सरकार का कहना है कि यह कदम डिजिटल फ्रॉड और स्कैम कॉल्स को रोकने में मददगार होगा। हालांकि, टेक एक्सपर्ट्स इसे यूजर्स की प्राइवेसी के लिए खतरा और कंपनियों के बिजनेस मॉडल के लिए चुनौती मान रहे हैं। ET Telecom की रिपोर्ट के अनुसार, इस आदेश को कानूनी चुनौती मिलने की भी संभावना है।
सिम-बाइंडिंग और संचार साथी ऐप क्या है?
सिम-बाइंडिंग का मतलब है कि अब WhatsApp और Telegram जैसे ऐप्स तभी चलेंगे जब फोन में वही सिम कार्ड हो जिसका नंबर ऐप में इस्तेमाल किया जा रहा हो। इसके अलावा Apple, Samsung, Motorola, Xiaomi, Vivo और Oppo जैसी कंपनियों को संचार साथी ऐप को फोन में प्री-इंस्टॉल करना अनिवार्य कर दिया गया है। आदेश का पालन न करने पर कंपनियों पर जुर्माना लगाया जा सकता है।
टेक एक्सपर्ट्स की चिंताएँ
टेक इंडस्ट्री को इस आदेश से कई सवाल हैं:
- संचार साथी ऐप किस काम आएगा?
- डेटा कहां स्टोर किया जाएगा?
- क्या यूजर इसे हटा सकेंगे?
टेक्स्पर्ट्स का कहना है कि प्राइवेसी सबसे बड़ी चिंता का विषय है। Apple जैसी कंपनियों ने भी प्राइवेसी कारणों से इस आदेश का विरोध किया था। इंडस्ट्री का मानना है कि यह आदेश रेगुलेटरी ओवररीच है, यानी DoT जरूरत से ज्यादा नियंत्रण करने की कोशिश कर रहा है।
WhatsApp और अन्य ऐप्स पर असर
सिम-बाइंडिंग आदेश WhatsApp जैसे ऐप्स के बिजनेस मॉडल को बदल सकता है। फिलहाल यह ऐप्स फोन नंबर पर काम करते हैं, लेकिन अब इन्हें ईमेल आईडी या किसी अन्य आइडेंटिफायर पर शिफ्ट करना पड़ सकता है। विदेश यात्रा करने वाले यूजर्स के लिए भी यह बड़ी समस्या बन सकती है।
कानूनी चुनौती की तैयारी
स्मार्टफोन और मैसेजिंग कंपनियां इस आदेश के खिलाफ कानूनी चुनौती देने की तैयारी में हैं। ब्रॉडबैंड इंडिया फोरम (BIF) के प्रेसिडेंट टी.वी. रामचंद्रन का कहना है कि यह फैसला टेलीकॉम ऑपरेटरों की जिम्मेदारी ऐप्स और स्मार्टफोन कंपनियों पर डालता है और तकनीकी रूप से सभी डिवाइस पर सही काम नहीं कर सकता।