
जयपुर: आरएएस 2018 में चयनित तहसीलदार कंचन चौहान अब विवादों में घिर गई हैं। उन पर फर्जी दिव्यांगता प्रमाण पत्र का इस्तेमाल कर आरक्षित कोटे से नौकरी पाने का आरोप लगा है। यह मामला तब सुर्खियों में आया जब आरटीआई एक्टिविस्ट फणीस कुमार सोनी ने इसकी शिकायत की।
कंचन चौहान का आरएएस में चयन दिव्यांग श्रेणी के आरक्षित कोटे से हुआ था। उन्होंने श्रवण बाधित (बधिर) होने का सर्टिफिकेट प्रस्तुत किया। अजमेर के एक डॉक्टर द्वारा जारी यह सर्टिफिकेट अब विवादों में है क्योंकि डॉक्टर ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। फणीस कुमार सोनी ने अपनी शिकायत में बताया कि कंचन ने वर्ष 2013 और 2016 की आरएएस भर्ती में भी आवेदन किया था, लेकिन तब उन्होंने दिव्यांगता का सर्टिफिकेट नहीं लगाया।
कंचन चौहान का चयन तीसरे प्रयास में हुआ। पहले 2013 में प्री-लीमिनरी में और 2016 में मेंस परीक्षा में सफल नहीं हो पाने के बाद उन्होंने आरएएस 2018 में तहसीलदार सेवा के लिए चयन प्राप्त किया। चयन से पहले वे महिला एवं बाल विकास विभाग में सुपरवाइजर थीं। उनके पति उपमन्यु चौहान भी सरकारी नौकरी में हैं और ग्राम सेवक के पद पर कार्यरत हैं।
ब्यावर के भाजपा विधायक शंकर सिंह रावत की पुत्री कंचन चौहान की प्रारंभिक पढ़ाई उनके गांव किशनपुरा में हुई। बाद में उनका चयन अजमेर के नवोदय विद्यालय में हुआ। आरएएस में चयन के बाद कंचन ने बताया कि बचपन से उनका सपना आरएएस अधिकारी बनकर सेवा करना था। उन्होंने शादी और परिवारिक जिम्मेदारियों के बावजूद नियमित रूप से पढ़ाई जारी रखी।
इस मामले ने राजनीतिक और प्रशासनिक गलियारों में चर्चा छेड़ दी है, क्योंकि चयन विवाद के साथ-साथ उनके पारिवारिक संबंध भी इसे अधिक सुर्खियों में ला रहे हैं।