
अंकारा/नई दिल्ली: नाटो सदस्य देश तुर्की ने एक बार फिर भारत के आंतरिक मामलों में दखल देने की कोशिश की है। तुर्की ने अपने राष्ट्रीय बजट भाषण में कश्मीर का मुद्दा उठाकर भारत से खुली तनातनी मोल ली है। यह पहला मौका नहीं है—एर्दोगन बार-बार अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कश्मीर का नाम लेकर पाकिस्तान की भाषा बोलते आए हैं। विश्लेषकों का कहना है कि राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप एर्दोगन मुस्लिम दुनिया में अपना दबदबा बढ़ाने और खुद को ‘इस्लाम का खलीफा’ के रूप में स्थापित करने की रणनीति के तहत ऐसा कर रहे हैं। इस खेल में पाकिस्तान और अब बांग्लादेश तुर्की के प्रमुख साथी बनते दिख रहे हैं।
कश्मीर मुद्दे के सहारे एर्दोगन का इस्लामिक दुनिया में ‘लीडर’ बनने का खेल
18 नवंबर को तुर्की संसद में विदेश मंत्री हाकन फिदान ने खुलकर पाकिस्तान का समर्थन किया और कश्मीर का मुद्दा उठाया। इससे पहले भी—
- एर्दोगन ने संयुक्त राष्ट्र में भारत पर बेबुनियाद आरोप लगाए,
- भारत के अपाचे हेलिकॉप्टरों को अपने क्षेत्र से गुजरने की मंजूरी रोक दी,
- और लगातार इस्लामी दुनिया को अपने पक्ष में लाने की कोशिश की।
विशेषज्ञों के अनुसार एर्दोगन का सपना है कि वे सऊदी अरब को पछाड़कर मुस्लिम देशों के सर्वोच्च नेता बनें। वो ऑटोमन साम्राज्य के वैभव की छवि दोबारा गढ़ना चाहते हैं और ‘मिडिल पावर’ के रूप में तुर्की का वैश्विक प्रभाव बढ़ाने की कोशिश में हैं। तुर्की आज 252 दूतावासों के साथ दुनिया में दूतावासों की संख्या में अमेरिका और चीन के बाद तीसरे स्थान पर है।
सऊदी को पीछे छोड़ने की रणनीति — ‘इत्तिहाद-ए-इस्लाम’ का हवा दे रहे एर्दोगन
एर्दोगन इस्लामिक दुनिया में नेतृत्व की लड़ाई में सऊदी अरब को चुनौती दे रहे हैं।
- ऑटोमन साम्राज्य के प्रतीकों का इस्तेमाल,
- सेकुलर इतिहास को खारिज करना,
- और इस्लामिक सम्मेलन संगठन (OIC) में सऊदी के प्रभाव को पीछे धकेलने की कोशिश—
ये सब उनके इसी अभियान का हिस्सा है।
एर्दोगन पाकिस्तान और मलेशिया के साथ मिलकर एक नया इस्लामिक गठबंधन बनाना चाहते थे। वे ‘इत्तिहाद-ए-इस्लाम’ का नारा देते हुए मुस्लिम दुनिया को एक झंडे के नीचे लाने की कोशिश कर रहे हैं।
कश्मीर, फिलिस्तीन, इस्लामोफोबिया — मुस्लिम दुनिया को साधने का एजेंडा
तुर्की के राष्ट्रपति—
- कश्मीर,
- फिलिस्तीन,
- और यूरोप में इस्लामोफोबिया
जैसे मुद्दों को दुनिया भर में जोर-शोर से उठाकर वैश्विक मुस्लिम आबादी में अपना समर्थन बढ़ा रहे हैं। इसका असर यह हुआ है कि कई कट्टरपंथी समूह तुर्की को मुस्लिम नेतृत्व के केंद्र के रूप में देखने लगे हैं।
तुर्की का धार्मिक संस्थान Diyanet भी इस मिशन में सक्रिय है। यह संस्था सुन्नी इस्लाम की हनफी परंपरा को बढ़ावा देती है और सऊदी के सलाफी प्रभाव को कम करने का प्रयास कर रही है। इसका सालाना बजट 3 अरब डॉलर से अधिक हो चुका है।
बांग्लादेश में तुर्की की घुसपैठ बढ़ी — जमात-ए-इस्लामी को मिल रहा खुला समर्थन
शेख हसीना के सत्ता से हटने के बाद बांग्लादेश में तुर्की का प्रभाव तेजी से बढ़ा है।
- नए कार्यकारी नेता मोहम्मद यूनूस तुर्की के और करीब आ गए हैं।
- तुर्की की सत्ताधारी पार्टी और जमात-ए-इस्लामी के बीच गहरी निकटता है।
- जमात के मदरसों और चैरिटी संस्थानों को तुर्की खुलकर फंडिंग कर रहा है।
दोनों ही मुस्लिम ब्रदरहूड जैसे वैश्विक कट्टरपंथी नेटवर्क को समर्थन देते हैं। शेख हसीना सरकार के दौरान जमात पर कड़े प्रतिबंध थे, लेकिन अब तुर्की के बढ़ते प्रभाव से हालात बदलते दिख रहे हैं।
भारत के खिलाफ मोर्चा — पाकिस्तान और बांग्लादेश बन रहे ‘टूल’
विश्लेषकों का कहना है कि एर्दोगन की महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने में—
- परमाणु हथियारों वाला पाकिस्तान,
- और नए नेतृत्व के अधीन बांग्लादेश,
दोनों तुर्की के बड़े साधन बनते जा रहे हैं। भारत के खिलाफ बयानबाजी भी इसी बड़े भू-राजनीतिक खेल का हिस्सा है।