
गुवाहाटी। असम में जमीन और पहचान को लेकर बनाई गई एक विवादित रिपोर्ट 41 साल बाद सार्वजनिक हुई। यह रिपोर्ट त्रिभुवन प्रसाद तिवारी आयोग द्वारा जनवरी-अप्रैल 1983 में तैयार की गई थी और तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने इसे दबाकर रखा था। रिपोर्ट में 1983 के नेल्ली नरसंहार और अन्य उपद्रवों की वास्तविक वजहों का खुलासा किया गया है।
तिवारी आयोग की रिपोर्ट: क्या है सच?
आयोग ने अवैध आव्रजन, भूमि कब्जा और असमिया पहचान को लेकर कई महत्वपूर्ण सिफारिशें कीं। रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया कि 1983 के दंगे किसी एक धर्म, जाति या भाषाई समूह के खिलाफ नहीं थे।
- हिंसा का खामियाजा समाज के सभी वर्गों ने भुगता।
- भूमि विवाद और आर्थिक हित टकराव इन दंगों के प्रमुख कारण थे।
- अवैध अप्रवासियों द्वारा भूमि पर कब्जा असमिया लोगों के लिए सबसे बड़ी समस्या थी।
पूर्व न्यायाधीश तिवारी ने यह भी लिखा कि 1979 के बाद अतिक्रमण को हटाना बंद हो गया था, जिससे असमिया निवासियों की परेशानियां बढ़ीं।
रिपोर्ट के सुझाव
आयोग ने अवैध अतिक्रमण और घुसपैठियों की समस्या को मिलाकर हल करने की सिफारिश की। प्रमुख सुझाव थे:
- मल्टी टास्क फोर्स का गठन, मजिस्ट्रेट के नेतृत्व में।
- सशस्त्र पुलिस का सहयोग आवश्यक, न कि कनिष्ठ अधिकारियों पर निर्भर।
- अचल संपत्ति को गैर-असमिया लोगों के हाथों में हस्तांतरित न होने देना।
- राज्य के बाहर से आने वाले नागरिकों पर उचित प्रतिबंध लगाना।
असमिया की पहचान
रिपोर्ट में असमिया पहचान स्पष्ट करने के लिए राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर, असम में न्यूनतम निवास अवधि और अन्य मानदंडों का उल्लेख किया गया।
- दो प्रकार के अप्रवासी बताए गए:
- पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) से उत्पीड़न से आए शरणार्थी।
- भूमि और आर्थिक अवसरों के लिए आए लोग।
- उत्पीड़ित शरणार्थियों को सहानुभूति और समर्थन मिलना चाहिए।
- बाद में यह अंतर CAA (नागरिकता संशोधन अधिनियम) में भी शामिल किया गया।
निष्कर्ष:
41 सालों तक दबाई गई इस रिपोर्ट ने असम में 1983 के नेल्ली नरसंहार और भूमि-संबंधी संघर्षों की वास्तविक जड़ें उजागर कर दी हैं। अब यह स्पष्ट हुआ कि हिंसा का कारण केवल सांप्रदायिक तनाव नहीं, बल्कि भूमि और आर्थिक हितों के टकराव थे।