
नई दिल्ली: इलेक्ट्रिक वाहनों, बैटरी स्टोरेज और क्लीन एनर्जी तकनीक की बढ़ती मांग के बीच रेयर अर्थ एलिमेंट्स (Rare Earth Elements) की अहमियत लगातार बढ़ रही है। लेकिन इस रणनीतिक खनिज की सप्लाई चेन पर चीन का दबदबा बना हुआ है। चीन ने खनन और रिफाइनिंग में अपनी पकड़ मजबूत कर रखी है और इसे वैश्विक बाजार में रणनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रहा है। भारत समेत अमेरिका और पश्चिमी देशों के लिए यह चुनौती बन गई है।
रेयर अर्थ का महत्व और वैश्विक परिदृश्य:
रेयर अर्थ एलिमेंट्स में 17 धातुएं शामिल हैं, जो मोबाइल, कंप्यूटर हार्ड ड्राइव, इलेक्ट्रिक-हाइब्रिड वाहन, फ्लैट स्क्रीन मॉनिटर और टीवी में इस्तेमाल होती हैं। इसके अलावा डिफेंस क्षेत्र में गाइडेंस सिस्टम, लेजर और रडार जैसी तकनीक में भी इनकी भूमिका अहम है। दुनिया में लगभग 11 करोड़ मीट्रिक टन रेयर अर्थ ऑक्साइड का भंडार है, लेकिन चीन खनन में 70% और रिफाइनिंग में 90% हिस्सेदारी रखता है।
भारत की स्थिति:
भारत के पास कुल 6.9 मिलियन मीट्रिक टन रेयर अर्थ रिज़र्व हैं, लेकिन देश की वर्तमान उत्पादन क्षमता सीमित है। देश अपनी जरूरत का 90% हिस्सा आयात करता है, जिसका बड़ा हिस्सा चीन से आता है। पिछले साल भारत ने लगभग 460 टन नियोडाइमियम-आयरन-बोरोन मैग्नेट्स आयात किए थे।
सरकारी पहल और भविष्य की राह:
केंद्रीय कैबिनेट ने हाल ही में चीन पर निर्भरता कम करने और रेयर अर्थ परमानेंट मैग्नेट्स का उत्पादन बढ़ाने के लिए अहम कदम उठाए हैं। जानकारों का कहना है कि भारत को अगले 3-5 साल में पूरी घरेलू वैल्यू चेन तैयार करनी होगी। इसके लिए पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप के जरिए लोकल माइनिंग, मैग्नेट प्रोडक्शन क्लस्टर और हाई-टेक्नोलॉजी निवेश को बढ़ावा देना जरूरी है।
विशेषज्ञों की राय:
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर भारत इस दिशा में कदम उठाता है, तो न केवल चीन पर निर्भरता कम होगी बल्कि देश स्ट्रैटेजिक और आर्थिक सुरक्षा भी सुनिश्चित कर सकेगा।