
बेंगलुरु। कर्नाटक कांग्रेस में मुख्यमंत्री बदलने की उठी सरगर्मी अब जातिगत टकराव के नए दौर में प्रवेश करती दिखाई दे रही है। उपमुख्यमंत्री डी.के. शिवकुमार और मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के बीच पावर ट्रांसफर को लेकर चल रही मौन खींचतान में अब अलग-अलग मठों के प्रमुख खुले मैदान में उतर आए हैं। धार्मिक गुरुओं की इस हस्तक्षेप ने राजनीतिक मुद्दे को सीधा जातिगत पहचान और समुदाय आधारित समर्थन की दिशाओं में मोड़ दिया है।
■ वोक्कालिगा मठ का खुला समर्थन—‘डीके शिवकुमार को सीएम बनना चाहिए’
हसन जिले में आयोजित एक धार्मिक कार्यक्रम में वोक्कालिगा महासंस्थान के प्रमुख श्री निर्मलानंदनाथ स्वामीजी ने साफ शब्दों में कहा कि डी.के. शिवकुमार को मुख्यमंत्री बनना चाहिए। उन्होंने दावा किया कि वोक्कालिगा समुदाय ने राज्य को कई बड़े नेता दिए हैं और डीकेएस की मेहनत व संगठनात्मक क्षमता को देखते हुए उन्हें कार्यकाल के बचे हिस्से में नेतृत्व मिलना चाहिए। उनके इस बयान के बाद कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति अचानक समुदायों की लड़ाई में बदलती दिखी।
■ कागीनेले पीठ का पलटवार—‘सीएम बदलना किसी मठ का अधिकार नहीं’
इसके कुछ ही समय बाद कागीनेले पीठ के निरंजननंदपुरी श्री ने तीखे अंदाज में प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री बदलने जैसे संवैधानिक फैसले मठों के नहीं, विधायकों के क्षेत्राधिकार से जुड़े हैं। उनका सवाल था—“क्या सिर्फ किसी स्वामीजी के कहने से मुख्यमंत्री बदल दिया जाएगा?”
■ अन्य मठ भी मैदान में, बयानबाजी से बढ़ी राजनीतिक गर्मी
- निडुमामिडी मठ के प्रमुख चेन्नमल्ल वीरभद्र देशिकेंद्र स्वामीजी ने कहा कि विवाद को बढ़ने से रोकना कांग्रेस हाईकमान की जिम्मेदारी थी। जाति के आधार पर सीएम की मांग को उन्होंने अनुचित बताया और सिद्धारमैया को पद पर बने रहने की सलाह दी।
- मदवलेश्वर मठ के वीरेश्वर स्वामीजी ने कहा कि सिद्धारमैया को अगले कार्यकाल के लिए सत्ता डीके शिवकुमार को सौंप देनी चाहिए। उन्होंने चेतावनी भी दी कि ऐसा न होने पर राजनीतिक अस्थिरता बढ़ सकती है।
■ समुदायों की खुली लामबंदी—सड़क पर आने की चेतावनी
राजनीतिक विवाद अब सड़क पर उतरने की तैयारी में है।
- वोक्कालिगारा संघ ने चेतावनी दी है कि यदि डीकेएस को उनके हिस्से का वादा नहीं मिला तो बड़ा आंदोलन किया जाएगा।
- दूसरी ओर अहिंदा समुदाय के नेता और सिद्धारमैया के समर्थक मठों की चेतावनी को “दबाव की राजनीति” बताते हुए खुलकर विरोध में उतर आए हैं।
- खुद सीएम सिद्धारमैया के बेटे यतींद्र सिद्धारमैया ने भी साफ कहा है कि उनके पिता पूरा कार्यकाल पूरा करेंगे और यदि दबाव बनाया गया तो बड़ा संघर्ष किया जाएगा।
■ क्यों बढ़ा मामला?
कर्नाटक कांग्रेस पहले से ही सत्ता हस्तांतरण के कथित ‘जेंटलमैन एग्रीमेंट’ को लेकर सुर्खियों में रही है। अब धार्मिक गुरुओं के बयान, जातिगत समर्थन और राजनीतिक चेतावनियों के चलते यह विवाद सिर्फ सत्ता संघर्ष नहीं, बल्कि समुदायों के बीच प्रतिष्ठा की लड़ाई बन गया है।
■ हाईकमान की परीक्षा
स्थिति लगातार तनावपूर्ण हो रही है और कांग्रेस हाईकमान पर दबाव बढ़ गया है कि वह जल्द निर्णय लेकर पार्टी के अंदर उठ रहे जातिगत संघर्ष को शांत करे। फिलहाल पूरे राज्य की निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि पार्टी शीर्ष नेतृत्व इस विवाद को किस दिशा में मोड़ता है।
कुल मिलाकर कर्नाटक की राजनीति में ‘सीएम चेहरा’ मुद्दा अब धार्मिक और जातिगत प्रभावों की वजह से बड़ा सार्वजनिक संघर्ष बन चुका है, जिसके जल्द शांत होने के आसार दिखाई नहीं देते।