
नई दिल्ली: अमेरिका में H-1B वीजा के तहत काम कर रहे एक भारतीय टेक प्रोफेशनल के साथ ऐसा हुआ, जो हर विदेशी वर्कर के लिए चेतावनी बन सकता है। 2014 में मास्टर्स के लिए अमेरिका गए इस वर्कर ने पिछले 10 साल तक वहां काम किया और उसके पास स्वीकृत I-140 ग्रीन कार्ड याचिका भी थी। उसे पूरा विश्वास था कि उसका भविष्य सुरक्षित है। लेकिन कंपनी की गलती ने उसका अमेरिका में करियर छीन लिया।
गलत डॉक्यूमेंट्स से लगी एंट्री पर रोक:
वर्कर के अनुसार, उसकी पिछली कंपनी ने H-1B याचिका के दौरान उसके जानकारी के बिना वेंडर-क्लाइंट डॉक्यूमेंट्स जमा कर दिए। अमेरिका लौटते समय इसे फ्रॉड माना गया और 212(a)(6)(C)(i) के तहत एंट्री बैन लग गई। भारतीय वर्कर ने बताया, “मैं हैरान और उलझन में पड़ गया। मुझे तुरंत वापस भेज दिया गया।”
212(d)(3) वेवर का प्रयास:
अमेरिका लौटने का एकमात्र विकल्प 212(d)(3) वेवर (छूट) था। इसके लिए अमेरिकी वाणिज्य दूतावास की सिफारिश जरूरी थी। हालांकि, आठ महीने की कोशिशों के बावजूद एडमिसिबिलिटी रिव्यू ऑफिस (ARO) ने वेवर देने से मना कर दिया।
निराशा और उम्मीद:
अब भारत लौट चुके वर्कर ने कहा, “मुझे अमेरिका की बहुत याद आ रही है। मेरा जीवन, दोस्त, और काम वहीं है। मुझे उम्मीद है कि भविष्य में कोई कानूनी रास्ता मिलेगा।”
कानूनी पहलू:
अमेरिका के ‘इमिग्रेशन एंड नेशनलिटी एक्ट’ के तहत अगर कोई विदेशी वर्कर झूठी जानकारी या फ्रॉड का हिस्सा होता है, तो उसकी लाइफटाइम एंट्री पर रोक लग सकती है। दुर्भाग्यवश, इस मामले में गलती वर्कर की नहीं, बल्कि कंपनी की थी, लेकिन कानून के तहत जिम्मेदारी वर्कर पर ही मानी गई।