Monday, December 1

लेज़र वेपन से मिसाइलें रोकी जा सकेंगी? इज़रायल जैसा ‘आयरन बीम’ सिस्टम तैयार करने की दिशा में भारत… चीन–पाक चुनौती के खिलाफ डेवलपमेंट तेज

नई दिल्ली/एजेंसियां: आधुनिक युद्ध अब हथियारों का नहीं, टेक्नोलॉजी का खेल बन चुका है। दुनिया के बड़े देश—अमेरिका, इज़रायल, चीन और रूस—डायरेक्टेड एनर्जी वेपन (DEW) में तेज़ी से आगे बढ़ रहे हैं। इसी रेस में भारत ने भी एक महत्वपूर्ण कदम रखते हुए 30 किलोवॉट क्षमता वाले Mk-II(A) लेज़र DEW का सफल परीक्षण कर अपनी तकनीकी क्षमता का दम दिखाया है।

इज़रायल का “आयरन बीम”, अमेरिका का HELIOS सिस्टम, चीन का “साइलेंट हंटर” और रूस का “Peresvet” लंबे समय से इस क्षेत्र में सक्रिय हैं। अब भारत भी इसी वैश्विक कतार में मजबूती से खड़ा दिखाई दे रहा है।

DRDO का सफल परीक्षण, 5 किमी तक ड्रोन और सेंसर कर सकता है निष्क्रिय

13 अप्रैल 2025 को कुरनूल (आंध्र प्रदेश) में DRDO द्वारा किए गए टेस्ट में यह सिस्टम 5 किलोमीटर दूर तक—

  • फिक्स्ड विंग ड्रोन,
  • सर्विलांस सेंसर,
  • और ड्रोन स्वॉर्म के हिस्सों—
    को सटीकता से निष्क्रिय करने में सक्षम दिखा।

DRDO के रिटायर्ड वैज्ञानिक और IIT दिल्ली के पूर्व प्रोफेसर हरि बाबू श्रीवास्तव के अनुसार, लेज़र हथियार पारंपरिक मिसाइलों की तुलना में बेहद सस्ते, तेज़ और अधिक प्रभावी हैं। उनका कहना है कि “30 KW का लेज़र हथियार मिसाइलें नहीं रोक सकता, लेकिन इज़रायल जैसे 300 KW से ऊपर के सिस्टम बैलिस्टिक मिसाइलों को इंटरसेप्ट करने की क्षमता रखते हैं।”

क्यों ज़रूरी हैं लेज़र वेपन?

दुनिया भर में मिसाइल इंटरसेप्टरों की लागत और सीमित उत्पादन क्षमता से जुड़े डर के कारण DEW की जरूरत बढ़ गई है।

  • ईरान की मिसाइलों को रोकने में अमेरिका ने कुछ ही दिनों में THAAD का 25% इंटरसेप्टर स्टॉक खर्च कर दिया।
  • इंटरसेप्टर बनाने में सालों और अरबों रुपए लगते हैं।
  • इसके मुकाबले लेज़र का हर शॉट लगभग नगण्य लागत पर किया जा सकता है।

प्रकाश की गति से चलने वाला यह हथियार हाईस्पीड ड्रोन और संभावित मिसाइलों पर तुरंत प्रतिक्रिया देता है।

भारत का अगला लक्ष्य—20 किमी दूर से मिसाइलें गिराने वाला ‘सूर्या’ लेज़र

DRDO जल्द ही 300 किलोवॉट क्षमता वाले ‘सूर्या लेज़र DEW’ पर परीक्षण शुरू करेगा। यह सिस्टम

  • 20 किलोमीटर दूर
  • हाई स्पीड मिसाइलों
    को इंटरसेप्ट करने की क्षमता रखेगा।

DRDO का लक्ष्य है कि अगले दो वर्षों में लेज़र हथियारों को सेना की तैनाती में शामिल किया जाए और इन्हें

  • जहाज़ों,
  • लड़ाकू विमानों,
  • और सैटेलाइट प्लेटफॉर्म
    पर लगाया जा सके।

कैसे काम करते हैं ये हथियार?

प्रोफेसर श्रीवास्तव बताते हैं कि—

  • लेज़र वेपन लक्ष्य पर कुछ ही सेकंड में इतनी गर्मी पैदा करते हैं कि धातु पिघल जाती है।
  • माइक्रोवेव वेपन इलेक्ट्रॉनिक सर्किट जला देते हैं और एक साथ कई ड्रोन को ठप करने की क्षमता रखते हैं।
  • पार्टिकल बीम हथियार अभी शोध चरण में हैं, लेकिन भविष्य में आणविक स्तर पर नुकसान पहुंचाने में सक्षम होंगे।

सबसे बड़ी खासियतें:
✔ गोला-बारूद की जरूरत नहीं
✔ बेहद कम लागत
✔ प्रकाश की गति से वार
✔ सीमित दायरे में बिना collateral damage

चीन–पाकिस्तान की चुनौती से निपटने में मददगार

भारत के सामने चीन-पाकिस्तान की ओर से स्वॉर्म-ड्रोन, लो-कॉस्ट मिसाइल और हाई-एंड निगरानी तकनीकों का बढ़ता खतरा है।
लेज़र वेपन इस पूरे खतरे को कम लागत और तत्परता से जवाब दे सकते हैं।

हालांकि चुनौतियां भी कम नहीं—

  • बारिश, धुंध, बर्फ और धूल लेज़र बीम की क्षमता कम कर देते हैं।
  • हाई-एनर्जी लेज़र के लिए भारी बिजली चाहिए।
  • मोबाइल प्लेटफॉर्म पर कॉम्पैक्ट पावर सिस्टम विकसित करना कठिन।
  • दुश्मन भी अब रिफ्लेक्टिव कोटिंग्स जैसी तकनीकें विकसित कर रहे हैं।

भविष्य की जंग का चेहरा बदल देगा भारत का लेज़र सिस्टम

विशेषज्ञ मानते हैं कि आने वाले वर्षों में लेज़र हथियार

  • टैंकों,
  • नौसैनिक बेड़ों,
  • लड़ाकू विमानों,
  • और उपग्रहों
    पर लगाए जाएँगे और युद्ध के नियमों को पूरी तरह बदल देंगे।

भारत के Mk-II(A) परीक्षण ने यह संदेश साफ कर दिया है कि देश भविष्य की लड़ाई में पीछे नहीं, बल्कि अग्रिम पंक्ति में खड़ा होगा।

DRDO के अगले लक्ष्यों के पूरा होते ही भारत एशिया में पहला देश बन सकता है जिसके पास इज़रायल जैसे हाई-पावर लेज़र इंटरसेप्शन सिस्टम की क्षमता होगी।

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