Monday, December 1

दिल्ली धमाका: जिंदा बचे पीड़ितों की जिंदगी मौत से भी बदतर, डरावने सपनों में फंसे

नई दिल्ली (देवांशी मेहता): लाल किले के पास हुए दिल्ली धमाके ने कई लोगों की जान ले ली, लेकिन जो बचे उनकी जिंदगी मौत से भी कठिन हो गई है। 15-16 दिनों से पीड़ित एक पल भी चैन से सो नहीं पा रहे हैं। रात में अचानक जागना, फ्लैशबैक, डरावने सपने और रोजमर्रा की जिंदगी में भारी परेशानी इनकी आम दिक्कतें बन गई हैं।

राहुल कौशिक: डर ने बदल दी जिंदगी

21 वर्षीय राहुल कौशिक, जो 3D VFX एनिमेशन कोर्स के छात्र हैं, अब कॉलेज नहीं जा पा रहे। धमाके में उनका दोस्त अंकुश गंभीर रूप से घायल हुआ और उसकी एक आंख की रोशनी चली गई। राहुल कहते हैं, “हर बार जब आंखें बंद करता हूं, वही दृश्य मेरे सामने आता है। खून, घायल दोस्त, मृतक लोग—सब कुछ।” डॉक्टरों ने उनके बाएं कान की सुनने की क्षमता स्थायी रूप से चली जाने की पुष्टि की है।

शायना और भवानी की जिंदगी बनी नरक

23 वर्षीय शायना का बायाँ कान पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया। धमाके के चलते उसका दाहिना कान भी ठीक से सुन नहीं पाता। कार्यालय ने उसे नौकरी से निकाल दिया, शादी पोस्टपोन कर दी गई।

कैब ड्राइवर भवानी शंकर शर्मा (33) धमाके में गंभीर रूप से घायल हुए। चेहरे, हाथ और पैर पर चोटें आईं। डॉक्टरों के अनुसार उन्हें कम से कम छह महीने आराम की आवश्यकता है। अब उनकी जिंदगी एक कभी न खत्म होने वाले बुरे सपने में फंसी हुई है।

विशेषज्ञ की चेतावनी

काउंसलिंग साइकोलॉजिस्ट ईशा मेहता बताती हैं कि जिंदा बचे पीड़ित पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (PTSD) के लक्षण दिखा रहे हैं। यदि समय पर साइको-सोशल सपोर्ट और थेरेपी नहीं दी गई, तो पैनिक अटैक, डिप्रेशन और आत्महत्या जैसे गंभीर परिणाम हो सकते हैं।

सरकारी मदद न मिलने का असर

अब तक पीड़ितों को कोई फॉर्मल साइको-सोशल सहायता नहीं मिली है। विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि अगर जल्द सहायता नहीं दी गई, तो इनकी मानसिक स्थिति और खराब हो सकती है

लाल किले का यह धमाका न केवल शारीरिक नुकसान, बल्कि जिंदा बचे लोगों के मानसिक जीवन पर भी गहरा असर डाल गया है

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