
जयपुर: राजस्थान की प्रशासनिक हलचल के बीच मुख्य सचिव IAS सुधांश पंत का अचानक दिल्ली ट्रांसफर होना राजनीतिक और प्रशासनिक गलियारों में चर्चा का सबसे बड़ा विषय बन गया है। 10 नवंबर की देर रात जारी आदेश में केंद्र ने पंत को वापस बुलाते हुए उन्हें सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय में सचिव पद की जिम्मेदारी सौंप दी। यह बदलाव ठीक उस समय हुआ, जब उनके रिटायरमेंट में अभी दो साल से अधिक का समय बचा हुआ है।
तनाव बना ट्रांसफर की मुख्य वजह?
सूत्रों का कहना है कि बीते कुछ महीनों में आईएएस सुधांश पंत और मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा के बीच दूरियां बढ़ती जा रही थीं। कई महत्त्वपूर्ण फाइलों के निस्तारण और प्रशासनिक निर्णयों में मतभेद सामने आए। विपक्ष भी बार-बार आरोप लगा रहा था कि प्रदेश में फैसले मुख्यमंत्री नहीं, बल्कि मुख्य सचिव ले रहे हैं। भाजपा संगठन के भीतर भी “ब्यूरोक्रेसी के बढ़ते प्रभाव” को लेकर नाराजगी देखी जा रही थी।
CMO बनाम CS—दो केंद्रों की शक्ति की थ्योरी
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि भजनलाल सरकार अपनी यह छवि खत्म करना चाहती थी कि प्रदेश के बड़े फैसलों पर CMO से ज्यादा मुख्य सचिव का प्रभाव है।
इसी कड़ी में—
- कई फाइलें मुख्य सचिव को बाइपास कर सीधे CMO से भेजी गईं
- कई प्रमुख ट्रांसफर उनकी मंजूरी के बिना ही मंजूर हुए
- महत्वपूर्ण स्टाफिंग और नीतिगत निर्णयों में उन्हें कथित रूप से साइडलाइन किया गया
बताया जा रहा है कि इन घटनाओं से नाराज पंत ने खुद दिल्ली वापसी में रुचि दिखाई, जिसके बाद केंद्र ने तुरंत आदेश जारी कर दिए।
कार्यकाल अधूरा, रिटायरमेंट दूर—इसलिए बढ़ी चर्चा
सुधांश पंत जनवरी 2024 में राजस्थान के मुख्य सचिव बने थे। केंद्र ने उन्हें विशेष रूप से भजनलाल सरकार की पहली टर्म में प्रशासनिक नेतृत्व के लिए भेजा था। ऐसे में 2027 तक सरकार का कार्यकाल शेष होने और उनका रिटायरमेंट फरवरी 2027 में होने के बावजूद बीच में ही वापसी ने सभी को हैरान कर दिया।
केंद्र में नई जिम्मेदारी
अब सुधांश पंत सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय में सचिव पद की जिम्मेदारी संभालेंगे। वे अमित यादव की जगह लेंगे, जो 30 नवंबर को सेवानिवृत्त हो रहे हैं।
राजस्थान में चर्चाओं का दौर जारी
पंत के अचानक ट्रांसफर को लेकर प्रदेश की सियासत में चर्चाओं का दौर थमने का नाम नहीं ले रहा है। विपक्ष इसे सरकार के भीतर असंतुलन का संकेत बता रहा है, जबकि सत्ता पक्ष इसे “सामान्य प्रशासनिक निर्णय” बताया रहा है।
हालांकि, नौकरशाही में इस घटना से यह संदेश साफ है कि राजस्थान में प्रशासनिक समीकरण लगातार बदल रहे हैं।