
पटना: बिहार की नई सरकार के गठन के बाद गुरुवार को गांधी मैदान में मंत्रियों ने शपथ ली। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 10वीं बार पदभार संभाला। बीजेपी, जेडीयू, लोजपा रामविलास, HAM और RLM के कोटे से कई नए चेहरों ने मंत्री पद की शपथ ली। लेकिन इस बार हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (HAM) के हिस्से में जो निर्णय आया, उसने राजनीतिक गलियारों में कई सवाल खड़े कर दिए।
5 विधायकों वाली पार्टी ने MLC को दिया मौका
HAM को इस विधानसभा चुनाव में 5 सीटों पर जीत मिली। इमामगंज से दीपा मांझी, कुटुंबा से ललन राम, बाराचट्टी से ज्योति देवी, अतरी से रोमित कुमार और सिकंदरा से प्रफुल्ल कुमार मांझी विजयी रहे। इसके बावजूद मंत्री पद की शपथ दिलवाई गई विधान परिषद सदस्य (MLC) संतोष सुमन को।
संतोष सुमन—लॉटरी फिर उन्हीं की लगी
संतोष सुमन पिछली सरकार में भी मंत्री रह चुके हैं। इस बार न उन्होंने चुनाव लड़ा और न विधायक बने, लेकिन HAM सुप्रीमो जीतन राम मांझी ने एक बार फिर बेटे संतोष सुमन का नाम ही मंत्री पद के लिए भेजा। परिणामस्वरूप, पार्टी के किसी नए विधायक को मौका नहीं मिला।
क्यों हुआ ऐसा फैसला?
पार्टी सूत्रों और राजनीतिक जानकारों का मानना है कि जीतन राम मांझी अपनी राजनीतिक विरासत अपने बेटे संतोष सुमन को सौंपने की रणनीति पर वर्षों से काम कर रहे हैं। ऐसे में पार्टी कोटे से मंत्री पद के लिए फिर उन्हीं का चयन होना तय माना जा रहा था।
मजेदार बात यह है कि इस बार मांझी की बहू और संतोष सुमन की पत्नी दीपा मांझी भी चुनाव जीतकर आई हैं, लेकिन उनके नाम पर भी विचार नहीं किया गया।
विरासत की राजनीति?
विशेषज्ञों का कहना है कि मांझी का पूरा फोकस अब अपने बेटे को पार्टी में मजबूत नेतृत्व के रूप में स्थापित करना है। इसलिए HAM के 5 चुने हुए विधायकों के होते हुए भी पिता ने अपने MLC बेटे को मंत्री बनवाकर यह संदेश दे दिया कि पार्टी की बागडोर भविष्य में किसके हाथ में रहेगी।
नई सरकार में शामिल होने के बाद संतोष सुमन एक बार फिर महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों की उम्मीद कर रहे हैं।