Wednesday, November 19

नक्सलवाद पर अंतिम प्रहार: हिडमा के बाद अब देवजी की बारी, संगठन में सिर्फ छह बड़े चेहरे बचे

नक्सलवाद की कमर लगभग टूट चुकी है। बस्तर से लेकर सीमावर्ती राज्यों तक सुरक्षा बलों के लगातार अभियानों ने माओवादी संगठन को हिला कर रख दिया है। शीर्ष नेतृत्व के एक-एक चेहरों को जवानों ने निशाना बनाया है। मादवी हिडमा के खात्मे के बाद अब संगठन की टॉप लेवल लीडरशिप में सिर्फ छह बड़े नक्सली बचे हैं। इनमें से सबसे बड़ा नाम देवजी का है, जो इस समय सुरक्षा एजेंसियों के रडार पर नंबर-1 टारगेट है।

छह बड़े नक्सली लीडर ही बचे

सूत्रों के अनुसार, सुरक्षा बलों के बढ़ते दबाव और ऑपरेशंस के कारण अब शीर्ष नेतृत्व में केवल छह प्रमुख नक्सली कार्यकर्ता बचे हैं—

  • देवजी
  • गणपति
  • संग्राम
  • उदय
  • गणेश उइके
  • अनल दा

इनमें से कई अलग-अलग राज्यों में छिपने पर मजबूर हैं। निरंतर दबाव की वजह से उनके संगठनात्मक ढांचे में भारी गिरावट आई है।

देवजी: सुरक्षाबलों का अगला बड़ा टारगेट

हिडमा के बाद सबसे खतरनाक और सक्रिय चेहरा देवजी माना जाता है। माओवादी संगठन के महासचिव के रूप में वही टुकड़ी की कमान संभालता है। बस्तर और आसपास के इलाकों में उसकी सक्रियता लंबे समय से देखी जाती रही है।
सुरक्षाबलों की कोशिश है कि हिडमा की तरह जल्द ही देवजी को भी ढेर किया जाए। अनुमान है कि दबाव बढ़ने पर वह पड़ोसी राज्यों की ओर भाग सकता है, लेकिन सुरक्षा एजेंसियों ने उसकी तलाश तेज कर दी है।

गणपति अब सिर्फ मेंटर की भूमिका में

कभी पूरे संगठन का ‘सुप्रीमो’ रहा गणपति अब बुढ़ापे और बीमारी के कारण सक्रिय भूमिका छोड़ चुका है। 2018 में पद छोड़ने के बाद से वह भूमिगत है और उसकी सक्रियता बेहद सीमित रह गई है।
बस्तर में पहले गणपति और देवजी ही संगठन का मुख्य चेहरा थे, लेकिन अब गणपति केवल मेंटर की भूमिका में रह गया है।

दहशत फैलाने वाले चेहरे खत्म, संगठन में लीडरशिप संकट

हिडमा के मारे जाने के बाद नक्सलियों से जुड़ा सबसे बड़ा दहशत का नाम खत्म हो चुका है। वह कई बड़े हमलों का मास्टरमाइंड था। उसके हटते ही नक्सलवाद की रीढ़ लगभग टूट गई है।

अब संगठन में लीडरशिप क्राइसिस साफ दिखाई दे रहा है।
सूत्र तो यहां तक दावा कर रहे हैं कि हाल ही की मुठभेड़ में देवजी के भी मारे जाने की खबर है, हालांकि इसकी आधिकारिक पुष्टि अभी नहीं हुई है।

छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद की उलटी गिनती

लगातार सफल ऑपरेशंस और जन-जागरूकता अभियानों ने नक्सलवाद को जमीनी स्तर पर कमजोर कर दिया है।
बस्तर में नक्सलवाद लगभग अंतिम सांसें गिन रहा है। दहशत फैलाने वाले बड़े चेहरे न के बराबर रह गए हैं और जिस ‘टॉप कमांड’ पर यह संगठन टिका था, वह अब पूरी तरह बिखर चुका है।

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