
कोटा। राजस्थान और मध्यप्रदेश की संयुक्त चंबल सिंचाई परियोजना के तहत राणा प्रताप सागर, जवाहर सागर और कोटा बैराज के रिनोवेशन का काम पिछले 6 वर्षों से ठप पड़ा हुआ है। लगातार फाइलों में घूमती इस योजना की लागत अब बढ़कर 100 करोड़ से 236 करोड़ तक पहुंच गई है। बढ़ती लागत के बावजूद कार्य आज तक आरंभ नहीं हो पाया है और अब टेंडर की अंतिम मंजूरी के लिए सरकार अमेरिका स्थित विश्व बैंक मुख्यालय की प्रतीक्षा कर रही है।
6 साल में 8 प्रस्ताव बदले, 12 कमेटियों ने निरीक्षण किया
इन वर्षों में—
- 8 बार प्रस्ताव बदले गए
- 12 हाई लेवल कमेटियाँ मौके पर पहुंचीं
- 150 से अधिक बार जयपुर–दिल्ली से अफसरों ने दौरे किए
- और 7 बड़े अफसरों के तबादले हो गए
इसके बावजूद परियोजना कागजों से बाहर नहीं निकल पाई है। जल संसाधन विभाग के अधीक्षण अभियंता सुनील गुप्ता के अनुसार अब तीनों बांधों का संयुक्त टेंडर बनाकर 236 करोड़ की अनुमानित लागत तय की गई है। विश्व बैंक की अनुमति मिलते ही टेंडर प्रक्रिया शुरू होगी।
65 साल पुराने बांधों की हालत बेहद खराब
राणा प्रताप सागर, जवाहर सागर और कोटा बैराज की स्थिति लगातार बिगड़ती जा रही है—
- राणा प्रताप सागर की सड़क पर परतें उखड़ चुकी हैं, रेलिंग कमजोर हो चुकी है और जॉइंट एंगल बाहर आ गए हैं।
- यहां के स्लूज़ गेट 37 साल से नहीं खुले, और अब गेटों में रिसाव भी शुरू हो चुका है।
- जवाहर सागर बांध का एक गेट अटका हुआ है।
- कोटा बैराज के गेट जाम और जंग से जर्जर हो चुके हैं।
स्थानीय लोगों और विशेषज्ञों का कहना है कि यह स्थिति किसी बड़े हादसे की चेतावनी है, इसलिए रिनोवेशन में और देरी गंभीर जोखिम साबित हो सकती है।
11 हजार करोड़ की राष्ट्रीय रिनोवेशन योजना का हिस्सा
6 साल पहले विश्व बैंक ने देश के 733 पुराने बांधों के जीर्णोद्धार के लिए 11,000 करोड़ रुपये स्वीकृत किए थे। उसी के तहत चंबल के तीनों बांधों के लिए—
- पहले 100 करोड़,
- फिर 134 करोड़,
- बाद में 187 करोड़ का प्रस्ताव भेजा गया था।
राणा प्रताप सागर के 21, जवाहर सागर के 12 और कोटा बैराज के 19 गेट बदलने की योजना है। नई तकनीक से इन्हें फिर से मजबूत करने का प्रस्ताव रखा गया है।
आधे राजस्थान की जीवनरेखा हैं ये बांध
राणा प्रताप सागर, जवाहर सागर और कोटा बैराज—
- हाड़ौती क्षेत्र की मुख्य सिंचाई व्यवस्था,
- रावतभाटा परमाणु संयंत्र,
- कोटा थर्मल,
- भारी पानी संयंत्र,
- अंता गैस प्लांट,
- पन बिजलीघर,
- और भीलवाड़ा–चित्तौड़–बूंदी की पेयजल योजनाओं**
की आधारशिला हैं।
भविष्य की महत्वाकांक्षी ईआरसीपी परियोजना भी इन्हीं बांधों पर निर्भर है।
टेंडर तीन बार फेल—कोई ठेकेदार सामने नहीं आया
रिपोर्टें बनती रहीं, निरीक्षण होते रहे, लेकिन काम शुरू नहीं हुआ।
- 12 सितंबर 2023—पहला टेंडर, कोई आवेदन नहीं
- 10 अक्टूबर 2023—दूसरी बार भी यही हाल
- 20 जनवरी 2024—तीसरी बार भी कोई ठेकेदार नहीं आया
इस बीच कोविड-19 और तकनीकी अड़चनों ने भी योजना को पीछे धकेला।
विश्व बैंक ने 183 करोड़ पहले ही मंजूर किए थे—अब लागत 236 करोड़
- राणा प्रताप सागर – 65.72 करोड़
- जवाहर सागर – 72.02 करोड़
- कोटा बैराज – 45.86 करोड़
लेकिन अब संयुक्त टेंडर बनाकर कुल लागत 236 करोड़ तक पहुंच चुकी है।