
पटना, 15 नवम्बर 2025: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में वामपंथी दलों को करारा झटका लगा है। तीन दलों वाले वामपंथी गठबंधन ने इस बार 33 सीटों पर चुनाव लड़ा था, लेकिन उसमें से केवल तीन सीटों पर ही जीत हासिल कर पाई। इनमें से दो सीटें भाकपा (माले) को और एक सीट माकपा को मिली है, जबकि भाकपा अपना खाता भी नहीं खोल पाई।
वाम दलों के प्रदर्शन में गिरावट
2020 में वामपंथी दलों ने महागठबंधन के तहत 29 सीटों पर चुनाव लड़ा था, जिसमें भाकपा (माले) को 12, भाकपा और माकपा को 2-2 सीटें मिली थीं। लेकिन 2025 के चुनाव में वाम दलों का प्रदर्शन उम्मीद से काफी नीचे गिरा। अब यह संख्या सिर्फ तीन सीटों तक सिमट गई है। हालांकि, भाकपा (माले) के संदीप सौरभ (पालीगंज) और अरुण सिंह (काराकाट) अपनी सीटें बचाने में सफल रहे, वहीं माकपा के अजय कुमार (विभूतिपुर) ने भी अपनी सीट बरकरार रखी।
सीटों का नुकसान और तालमेल की कमी
वामपंथी दलों के खराब प्रदर्शन का प्रमुख कारण चुनावी तालमेल की कमी को माना जा रहा है। भाकपा (माले) ने 20, माकपा ने 4, और भाकपा ने 6 सीटों पर चुनाव लड़ा था, जबकि कांग्रेस के साथ भी तीन सीटों पर ‘दोस्ताना मुकाबला’ हुआ था। इस उलझन भरे चुनावी गठबंधन ने महागठबंधन में तालमेल की कमी को उजागर किया, जिससे वाम दलों का वोट बैंक बिखर गया और चुनावी मुकाबला कमजोर हुआ।
विश्वसनीयता का संकट
वामपंथी दलों की हार महागठबंधन के भीतर की कमजोरियों को भी दर्शाती है। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, वाम दलों के चुनावी वादों को जनता ने अविश्वसनीय और अव्यावहारिक माना। महागठबंधन का ‘हर परिवार में एक नौकरी’ देने का वादा मतदाताओं के बीच गहरे संशय का कारण बना, जबकि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का ‘अगले पांच वर्षों में युवाओं के लिए एक करोड़ नौकरियाँ’ देने का वादा अधिक विश्वसनीय प्रतीत हुआ। इस तरह की विश्वसनीयता की कमी वाम दलों के लिए भारी पड़ गई।
महागठबंधन में गिरावट के संकेत
2025 के चुनाव परिणाम वामपंथी दलों के लिए एक बड़ा झटका साबित हुए हैं, और यह महागठबंधन के भीतर आंतरिक असहमति और रणनीतिक विफलताओं को भी उजागर करते हैं। वामपंथी दलों का प्रदर्शन अब 2015 के स्तर तक गिर गया है, जब वे अलग-अलग गुट के रूप में चुनाव लड़े थे। इस परिणाम से यह सवाल खड़ा हो रहा है कि क्या वामपंथी दलों को भविष्य में महागठबंधन के साथ अपने तालमेल को सुधारने की जरूरत है, या फिर उन्हें अपनी राजनीति और विश्वसनीयता में सुधार करने की आवश्यकता है?
वाम दलों का यह निराशाजनक प्रदर्शन आगामी चुनावी रणनीतियों के लिए महत्वपूर्ण संकेत छोड़ता है, जो भविष्य में उनकी राजनीतिक दिशा और गठबंधन के समीकरणों को प्रभावित कर सकते हैं।