Tuesday, December 30

शिक्षा में बदलावों का साल होगा 2026: स्कूल से कॉलेज तक इन 5 बड़े फैसलों पर टिकी रहेंगी नजरें

 

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नई दिल्ली। बीते कुछ वर्षों से देश की शिक्षा व्यवस्था बड़े बदलावों के दौर से गुजर रही है। नई शिक्षा नीति, परीक्षा सुधार, पाठ्यक्रम में संशोधन और विदेशी विश्वविद्यालयों की एंट्री जैसे फैसलों ने शिक्षा जगत में व्यापक बहस को जन्म दिया है। इसी कड़ी में साल 2026 शिक्षा के मोर्चे पर बेहद अहम साबित होने वाला है, जब स्कूल से लेकर उच्च शिक्षा तक कई बड़े फैसलों का असर जमीन पर दिखाई देगा।

 

विशेषज्ञों के अनुसार, 2026 में शिक्षा से जुड़े जिन पांच बड़े बदलावों, चुनौतियों और घटनाक्रमों पर सबसे ज्यादा निगाहें रहेंगी, वे इस प्रकार हैं—

 

 

  1. 10वीं में दो बार बोर्ड परीक्षा: कितना सफल होगा प्रयोग?

 

साल 2026 से सीबीएसई 10वीं बोर्ड परीक्षा साल में दो बार आयोजित करेगा। पहला एग्जाम फरवरी के मध्य और दूसरा मई के मध्य में होगा। छात्रों को दोनों में से बेहतर प्रदर्शन के आधार पर परिणाम का लाभ मिलेगा।

 

राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) के तहत इस बदलाव का उद्देश्य छात्रों पर परीक्षा का दबाव कम करना है। हालांकि इसके साथ कई चुनौतियां भी जुड़ी होंगी—

 

समय पर रिजल्ट जारी करना

बेहतर रिजल्ट आने पर 11वीं के विषय बदलने की व्यवस्था

सभी स्कूलों में समान गाइडलाइंस लागू करना

 

इसके अलावा, अप्रैल 2026 से तीसरी कक्षा से ही आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) की पढ़ाई शुरू होने जा रही है, जो स्कूली शिक्षा में बड़ा बदलाव मानी जा रही है।

 

 

  1. NTA में किए गए परीक्षा सुधार होंगे कितने असरदार?

 

इंजीनियरिंग, मेडिकल और केंद्रीय विश्वविद्यालयों की प्रवेश परीक्षाएं कराने वाली नेशनल टेस्टिंग एजेंसी (NTA) बीते सालों में विवादों के घेरे में रही है। पेपर लीक, उत्तर कुंजी की गलतियां और परीक्षा प्रबंधन पर सवाल उठने के बाद सरकार ने परीक्षा सुधारों के लिए एक उच्च स्तरीय समिति बनाई।

 

अब 2026 यह तय करेगा कि ये सुधार वास्तव में कारगर साबित होते हैं या नहीं। हर साल करीब 50 लाख से अधिक उम्मीदवार इन परीक्षाओं में शामिल होते हैं, ऐसे में परीक्षा की पारदर्शिता और सुचारु संचालन सरकार के लिए बड़ी चुनौती रहेगा।

 

 

  1. भारत में विदेशी विश्वविद्यालयों के कितने नए कैंपस खुलेंगे?

 

यूजीसी नियमों के तहत अब तक 19 विदेशी विश्वविद्यालयों को भारत में कैंपस खोलने की मंजूरी मिल चुकी है। इनमें ऑस्ट्रेलिया की यूनिवर्सिटीज की संख्या सबसे अधिक है।

 

गुजरात की गिफ्ट सिटी (गांधीनगर) में दो ऑस्ट्रेलियाई विश्वविद्यालयों ने पढ़ाई शुरू कर दी है, जबकि यूनिवर्सिटी ऑफ साउथेम्प्टन ने गुरुग्राम में अपने भारतीय कैंपस की शुरुआत की है।

 

2026 में जब और कैंपस खुलेंगे, तब यह देखना अहम होगा कि

 

क्या भारतीय छात्रों का विदेश जाना कम होगा?

क्या शिक्षा की गुणवत्ता वैश्विक मानकों पर खरी उतरेगी?

 

 

  1. ‘विकसित भारत शिक्षा अधिष्ठान विधेयक’ पर कितना सियासी घमासान?

 

उच्च शिक्षा को एकल नियामक के तहत लाने वाले ‘विकसित भारत शिक्षा अधिष्ठान विधेयक-2025’ को लोकसभा ने संयुक्त संसदीय समिति (JPC) को भेज दिया है। समिति बजट सत्र 2026 के अंत तक अपनी रिपोर्ट देगी।

 

इस बिल के लागू होने पर यूजीसी, एआईसीटीई और एनसीटीई जैसे संस्थानों की जगह नई नियामक संरचना आएगी। इससे उच्च शिक्षा संस्थानों की मान्यता, गवर्नेंस और फंडिंग व्यवस्था में बड़े बदलाव होंगे। इस मुद्दे पर राजनीतिक और शैक्षणिक जगत में तीखी बहस तय मानी जा रही है।

 

 

  1. शिक्षा में बढ़ता राजनीतिक हस्तक्षेप

 

कुलपतियों की नियुक्ति से लेकर पाठ्यपुस्तकों में बदलाव तक, शिक्षा को लेकर राजनीति लगातार तेज होती जा रही है। विपक्ष सरकार पर शिक्षा में वैचारिक हस्तक्षेप का आरोप लगाता रहा है।

 

सत्र 2026-27 से पहले 9वीं से 12वीं तक की नई किताबें लागू होंगी, जो नेशनल करिकुलम फ्रेमवर्क पर आधारित होंगी। पहले ही पाठ्यक्रम में बदलाव को लेकर विवाद हो चुके हैं, ऐसे में सीनियर क्लासेज की नई किताबों पर भी राजनीतिक बहस तेज होने की संभावना है।

 

 

निष्कर्ष

 

कुल मिलाकर, साल 2026 भारतीय शिक्षा व्यवस्था के लिए निर्णायक वर्ष साबित हो सकता है। इन फैसलों का असर न केवल छात्रों और शिक्षकों पर पड़ेगा, बल्कि देश की शिक्षा की दिशा और दशा भी तय करेगा।

 

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