Monday, December 22

नए साल के जश्न पर सुप्रीम कोर्ट का ब्रेक टाइगर रिजर्व और नेशनल पार्कों में अलाव जलाने पर पूरी तरह रोक

भोपाल। नए साल और क्रिसमस के जश्न की तैयारियों के बीच सुप्रीम कोर्ट के एक अहम फैसले ने जंगलों में होने वाले पर्यटन आयोजनों को बड़ा झटका दिया है। देशभर के टाइगर रिजर्व, नेशनल पार्क और वन्य प्राणी अभयारण्यों के कोर एरिया और ईको-सेंसिटिव जोन में अब लकड़ी के ‘अलाव’ जलाने पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया गया है। इस आदेश का सबसे ज्यादा असर जंगलों के भीतर और आसपास संचालित होटल, रिसोर्ट और बिजनेस सेंटर्स पर पड़ेगा, जहां हर साल सर्दियों में पर्यटकों के लिए अलाव जलाकर पार्टियां आयोजित की जाती थीं।

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वन्य जीवों की सुरक्षा को प्राथमिकता
सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुपालन में मध्य प्रदेश वन विभाग ने सख्त आदेश जारी किए हैं। प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यजीव) शुभ रंजन सेन की ओर से प्रदेश के सभी टाइगर रिजर्व, नेशनल पार्क और वाइल्ड लाइफ सैंक्चुरी के अधिकारियों को निर्देश दिया गया है कि कोर एरिया और ईको-सेंसिटिव जोन में लकड़ी जलाना किसी भी स्थिति में अनुमति योग्य नहीं होगा।

होटलरिसोर्ट और व्यावसायिक आयोजनों पर सीधा असर
आदेश में स्पष्ट किया गया है कि होटल, रिसोर्ट और अन्य व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में पर्यटकों के नाम पर होने वाले आयोजनों के दौरान भी अलाव नहीं जलाए जा सकेंगे। इतना ही नहीं, व्यावसायिक उपयोग के लिए फायरवुड जलाने पर भी पूरी तरह रोक रहेगी। यहां तक कि किचन में भी लकड़ी के इस्तेमाल की अनुमति नहीं होगी।

उल्लंघन पर सख्त कार्रवाई के निर्देश
वन विभाग ने सभी संबंधित अधिकारियों को यह भी निर्देश दिए हैं कि आदेश का उल्लंघन पाए जाने पर दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए। माना जा रहा है कि इस फैसले से जंगलों में ध्वनि, धुआं और आग से होने वाले प्रदूषण पर रोक लगेगी, जिससे वन्य प्राणियों के प्राकृतिक व्यवहार और सुरक्षा को लाभ मिलेगा।

जश्न होंगे सादे, लेकिन सुरक्षित
हर साल क्रिसमस और नए साल के मौके पर टाइगर रिजर्व और नेशनल पार्क क्षेत्रों में स्थित रिसोर्ट्स में भव्य पार्टियों और अलाव के जरिए ठंड से राहत देने की परंपरा रही है। लेकिन इस बार सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद जश्न भले ही सादे हों, पर वन्य जीवों और जंगलों की सुरक्षा को सर्वोपरि रखा जाएगा।

यह फैसला साफ संकेत देता है कि पर्यटन से पहले प्रकृति और वन्यजीवों की रक्षा जरूरी है, भले ही इसके लिए उत्सवों की चमक कुछ कम क्यों न करनी पड़े।

 

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