
नई दिल्ली: भारत के भावी प्रधान न्यायाधीश सूर्यकांत ने कहा है कि न्याय तक पहुंचने की राह सीधी और आसान नहीं है, बल्कि यह लंबी और घुमावदार होती है। उन्होंने यह विचार राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (नालसा) के कानूनी सहायता वितरण तंत्र पर आयोजित सम्मेलन के समापन सत्र में व्यक्त किए।
🔹 न्याय एक अधिकार है, आदर्श नहीं
न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा कि ‘‘न्याय तक पहुंच’’ केवल एक आदर्श नहीं, बल्कि एक अधिकार है, जिसे संस्थागत ताकत, पेशेवर क्षमता और करुणाभाव से पोषित किया जाना चाहिए। उन्होंने नालसा की नई पहल कानूनी सहायता रक्षा परामर्श प्रणाली की सराहना करते हुए कहा कि यह व्यवस्था देश के कोने-कोने तक न्याय पहुंचाने में मददगार साबित हो रही है।
🔹 चुनौती: कानूनी सेवा को मजबूत और पेशेवर बनाना
सूर्यकांत ने बताया कि कानूनी सेवा प्राधिकरणों ने अब तक काफी काम किया है, लेकिन अब चुनौती है इसे और मजबूत, पेशेवर और सार्थक बनाना। न्याय वितरण में नवाचार, तकनीक और सहानुभूतिपूर्ण जुड़ाव से इसका प्रभाव और गहरा किया जा सकता है।
🔹 नालसा की भूमिका और भविष्य
उन्होंने कहा कि नालसा का भविष्य केवल पहुंच बढ़ाने में नहीं है, बल्कि अपने प्रभाव को गहरा करने में है। उन्होंने यह भी कहा कि कानूनी सहायता देने वाले वकील प्रायः पहले प्रतिक्रियाकर्ता होते हैं, और न्याय व्यवस्था को मजबूत करने के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर, नीति और मानव पूंजी में निवेश जरूरी है।
🔹 24 नवंबर से संभालेंगे CJI का पदभार
सूर्यकांत 24 नवंबर से भारत के प्रधान न्यायाधीश के रूप में कार्यभार संभालेंगे। उन्होंने सम्मेलन में कहा कि नालसा अब केवल वैधानिक निकाय नहीं रहा, बल्कि संवैधानिक सहानुभूति और न्याय तक पहुंच के प्रतीक में बदल गया है। उनकी दृष्टि में नालसा की पहुंच देश के सुदूर क्षेत्रों तक हो चुकी है और यह उन लोगों के जीवन में भी बदलाव ला रहा है, जो पहले अनदेखे रह जाते थे।
संक्षिप्त हेडलाइन विकल्प:
➡️ “न्याय तक पहुंच लंबी और घुमावदार है: भविष्य के CJI सूर्यकांत”
➡️ “सुप्रीम कोर्ट के सूर्यकांत: न्याय एक अधिकार, इसे संस्थागत ताकत और करुणा से पोषित किया जाना चाहिए”
➡️ “नालसा की नई पहल को सराहा, न्याय तक पहुंच की चुनौती पर किया जोर”