
नई दिल्ली: 13 साल से कोमा में पड़े 31 वर्षीय हरीश राणा के पैसिव यूथेनेशिया (इच्छामृत्यु) मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अहम टिप्पणी की है। अदालत ने कहा कि याचिका पर अंतिम फैसला लेने का समय आ गया है, लेकिन इससे पहले हरीश के माता-पिता से बातचीत जरूरी है।
मेडिकल रिपोर्ट का निष्कर्ष:
AIIMS दिल्ली की दूसरी मेडिकल रिपोर्ट के अनुसार हरीश राणा के ठीक होने की संभावना न के बराबर है। सुप्रीम कोर्ट ने रिपोर्ट को अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी और हरीश के पिता की वकील रश्मि नंदकुमार को सौंपने का निर्देश दिया है।
अदालत की अगली कार्रवाई:
- जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच ने माता-पिता से मिलने और उनसे सीधे बात करने का फैसला किया है।
- माता-पिता को 13 जनवरी को कोर्ट में बुलाया जाएगा।
- दो वकीलों को निर्देश दिया गया है कि वे हरीश के परिवार से मिलकर कोर्ट को रिपोर्ट दें।
पैसिव यूथेनेशिया की प्रक्रिया:
सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही पैसिव यूथेनेशिया के लिए प्रक्रिया तय की है। आर्टिफिशियल लाइफ सपोर्ट हटाने का फैसला प्राइमरी और सेकंडरी मेडिकल बोर्डों की सहमति के बाद लिया जाता है। अगर रिपोर्टों में विरोधाभास होता है, तो कोर्ट निर्णय लेती है। कोर्ट आवश्यक होने पर एक स्वतंत्र समिति भी गठित कर सकती है, जिसमें अनुभवी डॉक्टर शामिल होंगे।
हरीश राणा का मामला:
हरीश राणा 20 अगस्त 2013 को चौथी मंजिल से गिर गए थे। विभिन्न अस्पतालों में इलाज के बावजूद उनकी हालत में कोई सुधार नहीं हुआ। उनके पिता ने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। कोर्ट ने मामला प्राथमिक मेडिकल बोर्ड को भेजने से इनकार किया था।
सुप्रीम कोर्ट का रुख:
अदालत हमेशा मरीज के जीवन के अधिकार का सम्मान करती है, लेकिन यह भी देखती है कि क्या किसी व्यक्ति को अनावश्यक पीड़ा में रखना उचित है। इस मामले में कोर्ट ने माता-पिता से सीधे बात कर यह सुनिश्चित किया कि सभी पहलुओं पर विचार करने के बाद ही कोई निर्णय लिया जाए।