
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजे लगभग साफ हो चुके हैं। जनता ने एक बार फिर नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार पर भरोसा जताया है। एग्जिट पोल जहां उलट सिद्ध हुए, वहीं एनडीए की रणनीति, योजनाओं और प्रबंधन ने चुनावी मैदान में निर्णायक बढ़त बना दी। आइए समझते हैं वे प्रमुख कारण, जिनकी वजह से एनडीए महागठबंधन पर भारी पड़ा।
नीतीश कुमार की अस्वस्थता पर विपक्ष का दांव फेल
चुनाव अभियान के दौरान विपक्ष ने लगातार नीतीश कुमार की सेहत को मुद्दा बनाकर युवा नेतृत्व की मांग उठाई, लेकिन मतदाताओं ने इस दलील को ठुकरा दिया। जनता ने नीतीश के अनुभव और कार्यशैली पर भरोसा जताते हुए एनडीए को मज़बूत जनादेश दिया।
4 करोड़ से अधिक लाभुक बने NDA के वोटबैंक
नीतीश-मोदी सरकार की कई योजनाओं का लाभ लाखों परिवारों तक पहुंचा। इन योजनाओं के करीब 4 करोड़ लाभुकों ने इस बार एनडीए के लिए वोटों की बाढ़ ला दी। योजनाओं का सीधा लाभ और समय पर क्रियान्वयन एनडीए का सबसे बड़ा वोट-कैचर साबित हुआ।
महिलाओं का अपार समर्थन
एक करोड़ से अधिक महिलाओं के खातों में 10 हजार रुपये की सहायता, जीविका समूहों को मजबूती, आशा-ममता कर्मियों का बढ़ा मानदेय, छात्राओं को छात्रवृत्ति और महिलाओं को पंचायत, निकाय और नौकरियों में आरक्षण—इन सभी कदमों ने महिलाओं को एनडीए की तरफ आकर्षित किया।
महिलाओं ने बड़ी संख्या में मतदान कर सरकार को निर्णायक बढ़त दिलाई।
125 यूनिट फ्री बिजली बना मास्टरस्ट्रोक
चुनाव से ठीक पहले 125 यूनिट मुफ्त बिजली का ऐलान जाति और धर्म की दीवारें तोड़कर सीधे जनता के हित में गया। यह घोषणा महागठबंधन की उम्मीदों पर भारी पड़ी और एनडीए को हर वर्ग से वोट दिलवाने में कारगर रही।
पांच पांडव की सामाजिक इंजीनियरिंग काम आई
जदयू, बीजेपी, हम, रालोमो और लोजपा (रामविलास)—इन पांच दलों का संयुक्त वोट बैंक महागठबंधन के जातीय समीकरण पर भारी पड़ा। बिहार की जातिगत राजनीति में यह गठबंधन एनडीए के लिए निर्णायक हथियार साबित हुआ।
बूथ प्रबंधन और सीट शेयरिंग ने दिलाई बढ़त
एनडीए ने सीटों की हिस्सेदारी समय रहते तय कर मैदान में उतरने का संदेश दिया, जबकि महागठबंधन में लंबे समय तक खींचतान जारी रही।
दूसरी ओर बूथ स्तर पर एनडीए की सशक्त तैयारी, सक्रिय कार्यकर्ता और पूरा प्रबंधन महागठबंधन पर भारी पड़ा। कई स्थानों पर महागठबंधन एजेंटों की गैरमौजूदगी भी उनकी बड़ी कमजोरी रही।
उम्मीदवारों का सही और समय पर चयन
एनडीए ने सबसे पहले अपने 100% उम्मीदवारों की घोषणा कर जनता को स्पष्ट विकल्प दिया। इसके उलट महागठबंधन में अंत तक मतभेद रहे। कई सीटों पर दोस्ताना टकराव की स्थिति बन गई, जिससे संदेश अच्छा नहीं गया और नुकसान झेलना पड़ा।
विद्रोहियों को साथ लाने की रणनीति सफल
तारापुर समेत कई सीटों पर जहां विद्रोहियों से नुकसान होने की आशंका थी, एनडीए ने समय रहते उन्हें अपने पाले में कर लिया। इस रणनीति ने कई सीटों पर सीधे विजय दिलाई।
कांग्रेस की सुस्ती भी रही कारण
एनडीए की जीत में कांग्रेस की कमजोरी भी एक बड़ा कारण बनी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जहां लगातार बिहार में सक्रिय रहे, वहीं कांग्रेस नेतृत्व की तरफ से उतनी गंभीरता नहीं दिखी।
सवर्ण, दलित और युवाओं के एक बड़े वर्ग की उम्मीदें कांग्रेस से धूमिल पड़ीं और वे दोबारा एनडीए की तरफ लौट गए।
निष्कर्ष
बूथ स्तर की मजबूत पकड़, योजनाओं का सीधा लाभ, महिलाओं और लाभुक वर्ग का समर्थन, जातीय समीकरण की गोलबंदी और विपक्ष की रणनीतिक चूक—इन सभी फैक्टरों ने मिलकर 2025 के चुनाव में एनडीए की जीत को सुनिश्चित किया। बिहार ने एक बार फिर नीतीश कुमार और एनडीए पर मुहर लगा दी।