
लद्दाख के बर्फीले रेगिस्तान में एक नई और गंभीर समस्या तेजी से उभर रही है। यहां जंगली (फेरल) कुत्तों की संख्या खतरनाक स्तर तक बढ़ चुकी है, जिससे न केवल लुप्तप्राय वन्यजीवों पर संकट मंडरा रहा है, बल्कि स्थानीय लोगों की सुरक्षा भी खतरे में पड़ गई है। संरक्षणवादियों के अनुसार, लद्दाख में जंगली कुत्तों की अनुमानित संख्या करीब 45 हजार तक पहुंच चुकी है, जो अब क्षेत्र के प्राकृतिक शिकारी जीवों से भी अधिक हो गई है।
दुर्लभ वन्यजीवों पर सीधा हमला
विशेषज्ञों का कहना है कि ये कुत्ते झुंड बनाकर शिकार करते हैं और लद्दाख की कई दुर्लभ व संरक्षित प्रजातियों को निशाना बना रहे हैं।
वाइल्डलाइफ कंजर्वेशन एंड बर्ड्स क्लब ऑफ लद्दाख (WCBCL) के अध्यक्ष लोबजंग विसुद्ध के अनुसार, जंगली कुत्ते न केवल हिम तेंदुए, भेड़िये और लोमड़ी जैसे प्राकृतिक शिकारी जीवों के भोजन क्षेत्र में दखल दे रहे हैं, बल्कि पल्लास की बिल्ली, यूरेशियन लिंक्स, तिब्बती गजेल, ब्लू शीप, आइबेक्स और हिमालयन मार्मोट जैसी अत्यंत दुर्लभ प्रजातियों का भी शिकार कर रहे हैं।
राज्य पक्षी भी असुरक्षित
यह संकट केवल स्तनधारियों तक सीमित नहीं है। जमीन पर घोंसला बनाने वाले पक्षी भी इन कुत्तों से सुरक्षित नहीं हैं।
कुत्तों के झुंड अक्सर लद्दाख के राज्य पक्षी काले गर्दन वाले सारस का पीछा करते देखे गए हैं। इसके अलावा, जब रुडी शेल्डक के चूजे चट्टानों पर बने घोंसलों से निकलकर पानी की ओर जाते हैं, तब भी जंगली कुत्ते उन पर हमला कर देते हैं।
इंसानी गतिविधियां बनीं वजह
वैज्ञानिकों और वन्यजीव अधिकारियों का मानना है कि यह समस्या पूरी तरह मानव-निर्मित है।
- बढ़ता पर्यटन
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सेना की बड़ी तैनाती
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खुले में फेंका जा रहा कचरा
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आवारा कुत्तों की नसबंदी और नियंत्रण की कमी
इन कारणों से कुत्तों को भरपूर भोजन मिल रहा है, जिससे उनकी संख्या बेकाबू हो गई है।
लोगों पर भी बढ़ रहे हमले
स्थानीय लोगों का कहना है कि अब ये कुत्ते इंसानों पर भी हमला करने लगे हैं, खासकर रात के समय और दूरदराज के इलाकों में। इससे आम जनजीवन में भय का माहौल बनता जा रहा है।
संरक्षणवादियों की चेतावनी
पर्यावरण विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि यदि समय रहते कुत्तों की आबादी को नियंत्रित करने के लिए ठोस नीति नहीं बनाई गई, तो लद्दाख की नाजुक पारिस्थितिकी और जैव विविधता को अपूरणीय क्षति हो सकती है।
निष्कर्ष:
लद्दाख में जंगली कुत्तों का बढ़ता खतरा यह सवाल खड़ा करता है कि क्या यह इंसानों की लापरवाही से पैदा हुई आफत है। यदि कचरा प्रबंधन, पशु नियंत्रण और वन्यजीव संरक्षण पर तत्काल ध्यान नहीं दिया गया, तो यह संकट आने वाले समय में और भी भयावह रूप ले सकता है।