
पटना: हाल ही में आई फिल्म धुरंधर में हमजा अली मजारी का किरदार हर किसी की जुबान पर है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि अकबर के शासनकाल में उसके जासूसों को बरीद कहा जाता था? करीब 500 साल पहले भी जासूसों ने बड़े कारनामे किए और सम्राज्य की सत्ता को बचाया।
अकबर का प्रशासन:
अकबर के समय भारत 12 सूबों में बंटा था – काबुल, लाहौर, मुल्तान, दिल्ली, आगरा, अवध, इलाहाबाद, बिहार, बंगाल, मालवा, अजमेर और गुजरात। बाद में खानदेश, अहमदनगर और बरार तीन और सूबे जुड़े। प्रत्येक सूबे का शासन सूबेदार करता था। जिलों में फौजदार और नगर में कोतवाल कानून और सुरक्षा का ध्यान रखते थे।
बरीद और वाकया नवीस:
अकबर ने शासन को मजबूत बनाने के लिए खुफियातंत्र की स्थापना की। जासूसों को बरीद और खोजी पत्रकारों को वाकया नवीस कहा जाता था। बरीद गुप्तचर की तरह काम करते थे, और वाकया नवीस राज्यभर में घूमकर रिपोर्ट तैयार करते थे। ये दोनों सीधे अकबर को ही रिपोर्ट देते थे और किसी अधिकारी के दबाव में नहीं आते थे।
अंडरकवर एजेंट की तरह बरीद:
बरीद अपनी पहचान छुपा कर काम करते थे। आधुनिक शब्दों में कहें तो ये अंडरकवर एजेंट थे। ये राज्य के सभी हिस्सों में घूमते और पता लगाते कि कौन अधिकारी राजा के प्रति वफादार है और कौन विरोधी। यहां तक कि बड़े दरबारियों, मंत्रियों और सेनापतियों तक की जासूसी भी करते थे।
बैरम खां और नाबालिग अकबर:
हुमायूं की मृत्यु के बाद, नाबालिग अकबर (14 वर्ष) का शासन खतरे में था। बैरम खां, जो अकबर के संरक्षक थे, हुमायूं की मौत छुपाकर सत्ता अपने हाथ में ले बैठे। इसी दौरान बरीद और वाकया नवीस ने पूरे साम्राज्य से रिपोर्ट भेजकर बैरम खां की करतूतों का पुख्ता सबूत अकबर तक पहुँचाया।
बैरम खां की साजिशें हुईं बेनकाब:
अकबर ने अपने विश्वासपात्र बरीदों की मदद से बैरम खां को पद से हटा दिया और हज यात्रा पर भेज दिया। इस बीच बरीदों ने बैरम खां का लोकेशन दुश्मन सेनापति मुबारक खां लोहानी को भी बताया। नतीजा ये हुआ कि पाटन में बैरम खां की हत्या कर दी गई।
निष्कर्ष:
अकबर के बरीद सिर्फ जासूस नहीं थे, बल्कि सम्राज्य की सुरक्षा और सत्ता की स्थिरता के संरक्षक थे। उनकी सूझबूझ और साहस ने मुग़ल साम्राज्य को संकटों से बचाया और उन्हें इतिहास में अमर बना दिया।