
अब तक फेफड़ों के कैंसर को बीड़ी-सिगरेट और लंबे समय तक धूम्रपान से जोड़कर देखा जाता रहा है, लेकिन हाल के वर्षों में एक डराने वाली सच्चाई सामने आई है। देश में हजारों ऐसी महिलाएं फेफड़ों के कैंसर की चपेट में आ रही हैं, जिन्होंने जीवन में कभी तंबाकू का सेवन नहीं किया।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, फेफड़ों का कैंसर दुनिया में सबसे ज्यादा जान लेने वाली बीमारियों में शामिल है। भारत में भी इसके मामलों में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। खास बात यह है कि नॉन-स्मोकिंग भारतीय महिलाओं में इस बीमारी के मामले तेजी से सामने आ रहे हैं।
बदलती तस्वीर: डॉक्टरों की चेतावनी
बेंगलुरु स्थित एचसीजी कैंसर हॉस्पिटल के कंसल्टेंट ऑन्को-पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ. मल्लिकार्जुन के मुताबिक, आज कामकाजी महिलाओं से लेकर गृहिणियों तक में लंग कैंसर के मामले बढ़ रहे हैं। यह केवल लाइफस्टाइल की विफलता नहीं, बल्कि पर्यावरणीय जोखिम और जेनेटिक बदलावों का नतीजा है।
रसोई का धुआं बन रहा ‘साइलेंट किलर’
नेशनल कैंसर रजिस्ट्री प्रोग्राम के आंकड़े बताते हैं कि घर के अंदर की खराब हवा और फेफड़ों के कैंसर के बीच गहरा संबंध है।
ग्रामीण और सेमी-अर्बन इलाकों में बायोमास फ्यूल (लकड़ी, उपले, कोयला) पर खाना पकाने से निकलने वाला धुआं बेहद खतरनाक होता है। वहीं शहरों में भी खराब वेंटिलेशन के कारण किचन का धुआं लंबे समय तक घर की हवा में बना रहता है, जो कैंसर का खतरा बढ़ाता है।
अगरबत्ती-धूपबत्ती का धुआं भी खतरनाक
भारतीय घरों में पूजा-पाठ के दौरान इस्तेमाल होने वाली अगरबत्ती और धूपबत्ती से निकलने वाला धुआं भी फेफड़ों को नुकसान पहुंचाता है। बंद कमरों में यह धुआं इंडोर एयर में हानिकारक कणों (पार्टिक्यूलेट मैटर) की मात्रा बढ़ा देता है, जिससे कैंसर का जोखिम बढ़ सकता है।
जेनेटिक म्यूटेशन भी बड़ी वजह
डॉक्टरों के अनुसार, नॉन-स्मोकिंग भारतीय महिलाओं में EGFR (Epidermal Growth Factor Receptor) नामक एक खास जेनेटिक म्यूटेशन पाया जा रहा है।
यह म्यूटेशन शरीर की कोशिकाओं के ‘ऑन-ऑफ स्विच’ की तरह काम करता है। जब यह स्विच बंद नहीं होता, तो कोशिकाएं असामान्य रूप से बढ़ने लगती हैं और कैंसर का रूप ले सकती हैं। यह बदलाव जीवन के दौरान होता है और एशियाई महिलाओं में ज्यादा देखा गया है।
जहरीली हवा: शहरों में छुपा खतरा
भारत के कई शहरों की हवा अब ‘पैसिव स्मोकर’ जैसी हो गई है। वाहनों का धुआं, निर्माण कार्यों की धूल और औद्योगिक प्रदूषण हवा में पीएम2.5 का स्तर खतरनाक हद तक बढ़ा रहे हैं।
विशेषज्ञों के मुताबिक, महिलाओं के फेफड़े पुरुषों की तुलना में छोटे होते हैं, इसलिए प्रदूषित हवा का असर उन पर ज्यादा गंभीर हो सकता है।
लक्षण जिन्हें न करें नजरअंदाज
- लंबे समय तक खांसी रहना
- सांस लेने में तकलीफ
- खांसी के साथ खून आना
- सीने में दर्द और लगातार थकान
विशेषज्ञों की सलाह है कि इन लक्षणों को हल्के में न लें और समय रहते जांच कराएं।
निष्कर्ष:
फेफड़ों का कैंसर अब सिर्फ धूम्रपान करने वालों की बीमारी नहीं रहा। घर की हवा, रसोई का धुआं, धार्मिक धुएं, जहरीला प्रदूषण और जेनेटिक बदलाव—ये सभी मिलकर महिलाओं के लिए एक गंभीर स्वास्थ्य संकट बनते जा रहे हैं।
(डिस्क्लेमर: यह लेख केवल सामान्य जानकारी के उद्देश्य से है। किसी भी चिकित्सीय सलाह के लिए विशेषज्ञ डॉक्टर से संपर्क करना आवश्यक है।)