
नई दिल्ली।
आधुनिक तकनीक ने सुरक्षा के नाम पर निगरानी को अभूतपूर्व स्तर तक पहुंचा दिया है। चीन और अमेरिका जैसे देशों में सरकारें अब ऐसे सर्विलांस सिस्टम का इस्तेमाल कर रही हैं, जिनमें कैमरे, फेस-स्कैनर, नंबर प्लेट रीडर और इन्फ्रारेड लाइट तकनीक शामिल है। यह सिस्टम लोगों की पहचान, आवाजाही और गतिविधियों पर लगातार नजर रखता है—वह भी कई बार उनकी जानकारी के बिना।
कैसे काम करता है यह सिस्टम?
जब कोई व्यक्ति रात में मोबाइल फोन अनलॉक करता है, एयरपोर्ट या रेलवे स्टेशन पर कैमरे के सामने आता है, या सड़क पर वाहन चलाता है—तो अदृश्य इन्फ्रारेड किरणें उसके चेहरे, शरीर या वाहन की नंबर प्लेट पर पड़ती हैं। ये किरणें हाई-रेजोल्यूशन कैमरों को व्यक्ति की सटीक पहचान करने में मदद करती हैं। इसी तकनीक से चेहरा पहचान (फेस रिकग्निशन), चाल-ढाल विश्लेषण और नंबर प्लेट रीडिंग संभव होती है।
चीन: दुनिया का सबसे बड़ा सर्विलांस नेटवर्क
दुनिया में सबसे व्यापक निगरानी नेटवर्क चीन में माना जाता है।
- एयरपोर्ट, रेलवे स्टेशन और सड़कों पर फेस-स्कैनिंग मशीनें और कैमरे तैनात हैं।
- नया सिम कार्ड लेने से लेकर कई सेवाओं के लिए चेहरा स्कैन कराना अनिवार्य है, जिसकी तस्वीरें डेटाबेस में सुरक्षित रखी जाती हैं।
- ट्रैफिक नियम तोड़ते ही कैमरे वाहन और चालक की पहचान कर लेते हैं।
एपी न्यूज की रिपोर्ट के मुताबिक, यह प्रणाली सरकार को विरोधियों, अल्पसंख्यकों और यहां तक कि अपने ही अधिकारियों पर नजर रखने की शक्ति देती है। कई नागरिकों का दावा है कि देशभर में फैले कैमरों के जाल ने उनकी आवाजाही की आज़ादी सीमित कर दी है।
बेकसूरों पर भी कार्रवाई के आरोप
पूर्व सरकारी इंजीनियर नुरेली अब्लिज सहित कई लोगों ने आरोप लगाया है कि इस तकनीक का इस्तेमाल बेकसूर नागरिकों की गिरफ्तारी में हुआ। तिब्बती कार्यकर्ता, किसान और एक पूर्व उपमहापौर तक का कहना है कि सर्विलांस ने उनकी निजी जिंदगी को कठिन बना दिया। अब्लिज को बाद में जर्मनी डिपोर्ट कर दिया गया।
अमेरिकी कंपनियों की भूमिका
जांच में यह भी सामने आया है कि चीन की निगरानी व्यवस्था के कई हिस्से अमेरिकी कंपनियों की तकनीक पर आधारित हैं। यानी जिस तकनीक पर अमेरिका में लंबे समय तक कानूनी पाबंदियां रहीं, वही विदेशों में बड़े पैमाने पर इस्तेमाल हुई।
अमेरिका में भी बढ़ी निगरानी
हालांकि यह तकनीक पहले अमेरिका में विकसित हुई, लेकिन हाल के वर्षों में वहां भी इसका दायरा तेजी से बढ़ा है।
- सीमा सुरक्षा बलों ने लाखों ड्राइवरों पर नजर रखने के लिए नंबर प्लेट पढ़ने वाले कैमरे लगाए हैं।
- यात्रा करने वालों की गतिविधियों को संदिग्धों की पहचान के नाम पर ट्रैक किया जा रहा है।
- ट्रंप प्रशासन के दौरान इस सिस्टम पर अरबों डॉलर खर्च किए गए।
आलोचकों का कहना है कि इस निगरानी में कई बार निर्दोष लोग भी फंस जाते हैं, जिससे निजता और नागरिक अधिकारों पर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं।
निजता बनाम सुरक्षा की बहस
विशेषज्ञों के अनुसार, सर्विलांस तकनीक अपराध रोकने में सहायक हो सकती है, लेकिन बिना सख्त कानूनी नियंत्रण के यह सरकारी जासूसी का रूप ले सकती है। सवाल यह है कि सुरक्षा के नाम पर नागरिकों की निजता की सीमा कहां तक होनी चाहिए?
निष्कर्ष:
चीन और अमेरिका में हाई-टेक सर्विलांस सिस्टम सुरक्षा का मजबूत हथियार बन चुका है, लेकिन इसके बढ़ते इस्तेमाल ने निजता, स्वतंत्रता और मानवाधिकारों पर नई बहस छेड़ दी है—जिसका जवाब अभी बाकी है।