
आजकल कई महिलाओं के साथ ऐसा होता है कि देर से शादी और करियर को प्राथमिकता देने के कारण वे फैमिली प्लानिंग में लेट हो जाती हैं। लेकिन इसी दौरान समाज से उन्हें ऐसे ताने और टिप्पणियां सुनने को मिलती हैं, जो उनके मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा असर डालती हैं। ऐसा ही कुछ शालू जैन के साथ हुआ, जो पेशे से स्कूल टीचर हैं।
देर से शादी और लेट प्रेग्नेंसी
शालू और उनके पति श्रेयस ने शादी थोड़ी देर से की। शालू की उम्र उस समय 33 साल थी और श्रेयस 35 पार कर चुके थे। शादी के करीब एक साल बाद जब उन्होंने प्रेग्नेंसी की कोशिशें शुरू कीं, तो शुरुआती प्रयास सफल नहीं हुए। दोनों ने तुरंत डॉक्टर से संपर्क किया और जांच कराई, जिसमें दोनों की रिपोर्ट्स नॉर्मल पाईं गईं। डॉक्टर ने आश्वासन दिया कि उम्र बढ़ने के बावजूद प्रेग्नेंसी संभव है।
समाज की बेबुनियाद टिप्पणियां
लेकिन इसी दौरान लोग बार-बार ताने देने लगे। शालू बताती हैं, “कई बार कहा गया, ‘अब क्या दादी-नानी बनने की उम्र में मां बनोगी?’ या ‘जब बच्चा स्कूल जाएगा, तब तक आप बूढ़ी हो जाएंगी।’ कुछ लोग यह भी कहते थे कि लेट प्रेग्नेंसी में बच्चा हेल्दी नहीं होगा।”
बार-बार सुनने से शालू की मेंटल हेल्थ प्रभावित हुई। उन्हें डर बैठ गया कि शायद वे कभी मां नहीं बन पाएंगी। ओवरथिंकिंग इतनी बढ़ गई कि डॉक्टर द्वारा सुझाए गए फर्टाइल विंडो में भी रिलेशन बनाने की प्रक्रिया में बाधा आने लगी।
डॉक्टर की सलाह और सुधार
शालू और श्रेयस ने डॉक्टर से मिलकर समाधान ढूंढा। डॉक्टर ने उन्हें मेंटल हेल्थ पर ध्यान, ब्रैथिंग एक्सरसाइज, योग और पर्याप्त नींद की सलाह दी। साथ ही, फोन और सोशल मीडिया से दूरी बनाए रखने की भी सख्त हिदायत दी।
आखिरकार खुशखबरी
धीरे-धीरे शालू ने लोगों की नकारात्मक टिप्पणियों को इग्नोर करना और डॉक्टर की सलाह का पालन करना शुरू किया। कुछ महीनों की कोशिशों के बाद उन्हें प्रेग्नेंसी की खुशखबरी मिली।
शालू की यह कहानी बताती है कि समाज की सोच और तानों से महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य पर कितना असर पड़ सकता है, और सही मार्गदर्शन व सपोर्ट से कैसे उम्मीद और खुशियाँ लौट सकती हैं।
डिस्क्लेमर: यह कहानी शालू जैन की है (नाम बदला हुआ)। यदि आप भी अपनी कहानी साझा करना चाहते हैं, तो nbtlifestyle@timesinternet.in पर ईमेल करें। आपकी पहचान पूरी तरह गोपनीय रखी जाएगी।