
पुणे नगर निगम चुनाव में बीजेपी के लिए चुनौती बढ़ती जा रही है। नगरनिगमकी165 सीटों के लिए पार्टी के सामने करीब 2000 कार्यकर्ताओंनेटिकटकेलिएआवेदनकियाहै। इस भारी दावेदारों की संख्या के चलते पार्टी के लिए टिकट बंटवारे में संतुलन बनाए रखना और बगावत रोकना बड़ी चुनौती बन गया है।
बीजेपी के लिए मुश्किल यह है कि पार्टी को शिवसेना के साथ गठबंधन निभाना है, जबकि अपने ही कार्यकर्ता टिकट पाने के लिए जोर दे रहे हैं। यदि टिकट वितरण से किसी भी स्तर पर कार्यकर्ता असंतुष्ट हुए, तो वे निर्दलीय बनकर चुनाव में चुनौती पेश कर सकते हैं।
बीजेपी का मजबूती से कब्जा:
पुणे में बीजेपी पिछले कई चुनावों से मजबूत रही है। 2017 में पहली बार नगर निगम की 98 सीटों पर जीत दर्ज करने वाली पार्टी ने पिछले विधानसभा चुनावों में पुणे की सभी छह सीटें और लोकसभा सीट भी अपने नाम की। इसलिए टिकट पाने वालों की भीड़ और गठबंधन का पेंच पार्टी के लिए सतर्कता की वजह बना है।
प्रदेश नेतृत्व करेगा अंतिम फैसला:
सूत्रों के अनुसार, जिले की तरफ से संभावित उम्मीदवारों की लिस्ट प्रदेश अध्यक्ष को भेज दी गई है। प्रदेश के वरिष्ठ नेता अंतिम निर्णय करेंगे। इस बार टिकट मांगने वालों में 98 पूर्व कॉर्पोरेटर, महायुति गठबंधन सहयोगी, कांग्रेस और एनसीपी के बागी भी शामिल हैं। बीजेपी 30 दिसंबर को नामांकन की अंतिम तारीख तक अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर सकती है, ताकि किसी भी तरह की बगावत से बचा जा सके।
शिवसेना के साथ गठबंधन:
पुणे नगर निगम में 41 वार्ड हैं। केंद्रीय मंत्री मुरलीधर मोहोल ने बताया कि बीजेपी एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना के साथ मिलकर चुनाव लड़ रही है। सीटों के बंटवारे पर चर्चा जारी है, और दोनों दलों को उम्मीद है कि गठबंधन पुणे में जीत सुनिश्चित करेगा।