
18 दिसंबर 1948 — भारतीय क्रिकेट इतिहास का वह दिन, जिसने खेल की आत्मा पर सवाल खड़े कर दिए।
एक बल्लेबाज क्रीज पर खड़ा था, आंखों में इतिहास रचने का सपना और हाथ में बल्ला। वह डॉन ब्रैडमैन जैसे महान खिलाड़ी का वर्ल्ड रिकॉर्ड तोड़ने से महज 10 रन दूर था। लेकिन तभी एक महाराजा की जिद ने मैच ही खत्म करवा दिया। नतीजा यह हुआ कि जो रिकॉर्ड भारत के नाम दर्ज हो सकता था, वह 11 साल बाद पाकिस्तान के खाते में चला गया।
रणजी ट्रॉफी का वह ऐतिहासिक लेकिन शर्मनाक मैच
दिसंबर 1948 में पुणे में रणजी ट्रॉफी का मुकाबला महाराष्ट्र और काठियावाड़ के बीच खेला जा रहा था। पहले दिन काठियावाड़ की पूरी टीम 238 रन पर सिमट गई। जवाब में महाराष्ट्र ने शानदार बल्लेबाजी शुरू की। 29 वर्षीय बी.बी. निम्बालकर जब क्रीज पर उतरे, तो किसी ने नहीं सोचा था कि वह इतिहास के इतने करीब पहुंच जाएंगे।
दूसरे दिन निम्बालकर और के.वी. भंडारकर ने दूसरे विकेट के लिए 455 रन की साझेदारी की। भंडारकर 205 रन बनाकर आउट हुए, जबकि निम्बालकर ने दिन खत्म होने तक 300 रन पूरे कर लिए। तीसरे दिन उन्होंने 400 रन भी पार कर लिए।
डॉन ब्रैडमैन का रिकॉर्ड टूटने ही वाला था
उस समय फर्स्ट क्लास क्रिकेट में सबसे बड़ी पारी का रिकॉर्ड डॉन ब्रैडमैन के नाम था — 452* रन।
निम्बालकर 443 रन बनाकर खेल रहे थे। महाराष्ट्र का स्कोर 4 विकेट पर 826 रन था और रिकॉर्ड टूटना तय माना जा रहा था।
लेकिन तभी काठियावाड़ के कप्तान और राजकोट के महाराजा प्रद्युम्नसिंहजी लाखाजीराजसिंहजी ने टी-ब्रेक का ऐलान कर दिया। इसके बाद उन्होंने आगे खेलने से साफ इंकार कर दिया।
दो ओवर की भीख, लेकिन महाराजा की जिद
महाराष्ट्र के कप्तान राजा गोखले और मैच अधिकारियों ने महाराजा से सिर्फ दो ओवर खेलने की अनुमति मांगी, ताकि निम्बालकर रिकॉर्ड तोड़ सकें। लेकिन महाराजा अपनी जिद पर अड़े रहे। उन्होंने साफ कहा— पारी घोषित करो या हम मैच छोड़कर जा रहे हैं।
इतना ही नहीं, महाराजा ने टीम का सामान पैक करवाया और खिलाड़ियों को लेकर स्टेडियम से निकल गए। अंपायरों को मजबूरन मैच समाप्त घोषित करना पड़ा। निम्बालकर क्रीज पर अकेले खड़े रह गए।
इतिहास में दर्ज हुई शर्मनाक घटना
निम्बालकर ने बाद में कहा था,
“मैं अकेला विकेट पर खड़ा रह गया और वे सब चले गए। उनका मानना था कि उनकी टीम का नाम गलत वजह से रिकॉर्ड बुक में जाएगा।”
निम्बालकर 8 घंटे 14 मिनट की पारी में 46 चौके और 1 छक्का लगाकर 443 रन नाबाद रहे, लेकिन रिकॉर्ड उनसे छिन गया।
रिकॉर्ड पाकिस्तान के नाम कैसे गया
करीब 11 साल बाद, 1959 में पाकिस्तान के हनीफ मोहम्मद ने 499 रन बनाकर डॉन ब्रैडमैन का रिकॉर्ड तोड़ा। यह रिकॉर्ड 35 साल तक पाकिस्तान के नाम रहा, जब तक 1994 में ब्रायन लारा ने 501* रन नहीं बना दिए।
कभी भारत के लिए नहीं खेल पाए निम्बालकर
दुखद पहलू यह रहा कि भारतीय क्रिकेट का सबसे बड़ा स्कोर बनाने वाले बी.बी. निम्बालकर को कभी टीम इंडिया के लिए खेलने का मौका नहीं मिला। उन्होंने फर्स्ट क्लास क्रिकेट में 80 मैचों में लगभग 48 के औसत से 4841 रन बनाए, फिर भी राष्ट्रीय टीम का दरवाजा उनके लिए नहीं खुला।
एक सवाल जो आज भी जिंदा है
अगर उस दिन महाराजा की जिद आड़े न आती, तो क्या डॉन ब्रैडमैन का रिकॉर्ड भारत के नाम होता?
18 दिसंबर 1948 का यह दिन आज भी भारतीय क्रिकेट इतिहास का सबसे दर्दनाक और विवादित अध्याय माना जाता है।