Thursday, December 18

महान मूर्तिकार राम सुतार का निधन, 100 वर्ष की आयु में ली अंतिम सांसकला जगत को अपूरणीय क्षति, देश ने खोया ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ का शिल्पकार

नोएडा।
देश के प्रसिद्ध और विश्वविख्यात मूर्तिकार राम सुतार का बुधवार देर रात लंबी बीमारी के बाद नोएडा के सेक्टर-19 स्थित आवास पर निधन हो गया। वे 100 वर्ष के थे। बीते लंबे समय से अस्वस्थ चल रहे राम सुतार चलने-फिरने और उठने-बैठने में असमर्थ थे। उनके निधन से देश और दुनिया के कला जगत में शोक की लहर दौड़ गई है। उनका अंतिम संस्कार गुरुवार को नोएडा के सेक्टर-94 में किया जाएगा।

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राम सुतार के निधन की पुष्टि उनके पुत्र अनिल सुतार ने की, जो स्वयं एक प्रतिष्ठित मूर्तिकार हैं और अपने पिता की कला विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं। राम सुतार को उनके अतुलनीय योगदान के लिए पद्मश्री, पद्म भूषण और पद्म विभूषण जैसे देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मानों से नवाजा गया था।

राम सुतार को दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ के शिल्पकार के रूप में विशेष पहचान मिली। इसके अलावा उन्होंने देश-विदेश में स्थापित महात्मा गांधी की 350 से अधिक प्रतिमाओं का निर्माण किया, जो उनकी सादगी और यथार्थवादी शैली की पहचान हैं। उन्होंने डॉ. भीमराव आंबेडकर की भी अनेक प्रतिमाएं बनाई। पुणे में स्थित छत्रपति संभाजी महाराज की 100 फीट ऊंची प्रतिमा भी उनकी प्रमुख कृतियों में शामिल है।

बीते नवंबर में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस स्वयं अपने मंत्रिमंडल के साथ नोएडा पहुंचे थे और राम सुतार को राज्य के सर्वोच्च नागरिक सम्मान महाराष्ट्र भूषण से उनके आवास पर सम्मानित किया था।

19 फरवरी 1925 को महाराष्ट्र के गोंडूर गांव में एक गरीब परिवार में जन्मे राम सुतार ने अपनी प्रतिभा और परिश्रम के बल पर अंतरराष्ट्रीय पहचान बनाई। उन्होंने वर्ष 1990 में नोएडा को अपना कार्यक्षेत्र बनाया और यहीं से अपनी कला साधना को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया। अजंता-एलोरा की गुफाओं में स्थित प्राचीन मूर्तियों के जीर्णोद्धार में भी उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा।

राम सुतार ने संसद भवन में स्थापित महात्मा गांधी की प्रतिमा, अयोध्या में प्रस्तावित 251 मीटर ऊंची भगवान श्रीराम की प्रतिमा तथा लता मंगेशकर चौक पर स्थापित वीणा जैसी अनेक ऐतिहासिक कृतियों को आकार दिया।

राम सुतार का निधन भारतीय कला और मूर्तिकला के इतिहास में एक युग के अंत के समान है। उनकी कृतियां आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देती रहेंगी और वे सदैव अपनी अमर कलाकृतियों के माध्यम से जीवित रहेंगे।

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