
पटना। हाल ही में बिहार बीजेपी में संगठनात्मक बदलाव के तहत संजय सरावगी को प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया गया। इस फैसले ने राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बना दिया है। जानकारों का कहना है कि संजय सरावगी के चयन के पीछे जातीय समीकरण नहीं बल्कि उनकी संगठनात्मक दक्षता प्रमुख कारण रही।
संगठन में मजबूत पकड़ का अंदाज़
दरभंगा से लगातार छह बार विधायक रह चुके संजय सरावगी ने यह साबित किया कि वह बदलते चुनावी समीकरणों में भी जीत हासिल कर सकते हैं। संगठन की जड़ में उतरकर बूथ स्तर तक कार्यकर्ताओं की भावनाओं को समझना और उनका कुशल प्रबंधन करना उनकी खासियत रही है। बीजेपी के रणनीतिकारों का मानना है कि राज्य में भाषण देने वाले नेता नहीं बल्कि संगठन को मज़बूत करने वाला व्यक्ति चाहिए था और इस दृष्टि से संजय सरावगी सही विकल्प साबित हुए।
जाति से ऊपर संगठनात्मक क्षमता
सवाल उठता है कि वैश्य जाति के नेता होने के बावजूद उनका चयन क्यों हुआ। इसके पीछे कारण यह है कि वैश्य समुदाय की अलग-अलग उपजातियां समग्र रूप से लगभग 20 प्रतिशत वोट बैंक बनाती हैं, जो चुनावी दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है। मारवाड़ी समुदाय का प्रभाव और संगठन में उनकी समझ ने उन्हें इस पद के योग्य ठहराया।
बीजेपी की रणनीति और भविष्य
पूर्व में ब्राह्मण, यादव और कुशवाहा समुदाय से चुने गए प्रदेश अध्यक्षों की तरह संजय सरावगी का चयन भी संगठन के मजबूत होने और चुनावी रणनीति के दृष्टिकोण से किया गया। अब साल 2029 के लोकसभा चुनाव संजय सरावगी की संगठनात्मक क्षमता का असली लिटमस टेस्ट साबित होगा।
संक्षिप्त निष्कर्ष
संजय सरावगी का प्रदेश अध्यक्ष बनना दर्शाता है कि बीजेपी में अब केवल जातीय समीकरण ही नहीं बल्कि संगठन क्षमता और कार्यकर्ता प्रबंधन भी महत्व रखता है। दरभंगा जैसे क्षेत्र से उठकर राज्य स्तर पर संगठन की कमान संभालना उनके नेतृत्व और रणनीतिक कौशल का परिचायक है।