
मेरठ: उत्तर प्रदेश के मेरठ प्रशासन ने शहर की झुग्गी–झोपड़ी और मलिन बस्तियों में रहने वाले प्रवासी परिवारों पर कड़ी निगरानी शुरू कर दी है। हालिया सर्वे में लगभग 6500 संदिग्ध व्यक्तियों की पहचान की गई है। प्रशासन ने डिटेंशन सेंटर स्थापित करने की योजना बनाई है, जिसकी क्षमता कम से कम 500 विदेशी नागरिकों के रहने की होगी।
सर्वे और पहचान की प्रक्रिया
झुग्गी-झोपड़ी प्रकोष्ठ द्वारा किए गए सर्वे में 1600 परिवारों की जांच की गई। इसमें से 3200 लोगों की पहचान को लेकर गंभीर शंका जताई गई है। इनकी पहचान विभिन्न राज्यों की पुलिस को सत्यापन के लिए भेजी गई है। सर्वाधिक संख्या असम से आए प्रवासियों की है, जबकि शेष बंगाल, राजस्थान और मध्य प्रदेश से हैं।
एसएसपी डॉ. विपिन ताडा ने बताया कि 52 स्थानों को चिन्हित किया गया है, जहाँ बड़ी संख्या में प्रवासी अस्थायी बस्तियों में रहते हैं। जिन लोगों ने पहचान संबंधी दस्तावेज नहीं दिखाए, उनके नाम अलग रजिस्टर में दर्ज किए गए हैं और उनकी हर गतिविधि पर ड्रोन के माध्यम से निगरानी रखी जा रही है।
डिटेंशन सेंटर की तैयारी
जिलाधिकारी डॉ. वीके सिंह ने गाजियाबाद के नंदग्राम मॉडल पर मेरठ में भी डिटेंशन सेंटर बनाने के निर्देश दिए हैं। सेंटर में रहने वालों के लिए भोजन, स्वास्थ्य सेवाएं और मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएंगी। डीएम ने यह भी स्पष्ट किया कि अभी तक जिले में कोई बांग्लादेशी, रोहिंग्या या अफ्रीकी मूल का व्यक्ति नहीं मिला है, लेकिन सतर्कता के लिए व्यवस्थाएं पहले से मजबूत की जा रही हैं।
प्रमुख प्रवासी बस्तियां और पृष्ठभूमि
हापुड़ रोड और लिसाड़ी गेट क्षेत्र प्रवासी बस्तियों के सबसे बड़े केंद्र हैं। लोहिया नगर डंपिंग ग्राउंड के पास घोसीपुर, फतेहउल्लापुर, यमुना नगर, आशियाना कॉलोनी और सोफीपुर जैसी बस्तियों में बड़ी संख्या में बंगाल और असम के लोग रहते हैं, जो मुख्य रूप से कबाड़ बीनकर जीवन यापन करते हैं।
मेरठ प्रशासन ने जोर दिया है कि नवीनतम घटनाओं, जैसे नवंबर 2022 में हापुड़ रोड पर आग लगने और झुग्गियों के नष्ट होने के बाद फर्जी आधार कार्ड बनने जैसी घटनाओं के कारण अब प्रमाणिकता की जांच और सख्ती बढ़ा दी गई है।
