Saturday, December 6

पटना पुस्तक मेला: वरिष्ठ लेखक अवधेश प्रीत को समर्पित आयोजन, उद्घाटन समारोह में पहुंचे CM नीतीश कुमार

पटना। साहित्य–संस्कृति प्रेमियों के लिए बहुप्रतीक्षित 41वां पटना पुस्तक मेला शुक्रवार को गांधी मैदान में शुरू हो गया। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने दीप प्रज्ज्वलन कर मेले का शुभारंभ किया और इसके बाद विभिन्न प्रकाशकों के स्टॉल का अवलोकन किया। मुख्यमंत्री ने मंच पर एक पुस्तक का विमोचन भी किया। कार्यक्रम में जल संसाधन राज्य मंत्री विजय कुमार चौधरी समेत कई गणमान्य लोग उपस्थित रहे।

सेंटर फॉर रीडरशिप डेवलपमेंट (सीआरडी) द्वारा आयोजित यह महोत्सव 16 दिसंबर तक चलेगा। इस वर्ष का आयोजन हाल ही में दिवंगत हुए वरिष्ठ कथाकार अवधेश प्रीत को समर्पित है। मेले का विषय है—“वेलनेस: ए वे ऑफ लाइफ” (स्वास्थ्य—जीवन जीने का एक तरीका), जो राष्ट्रीय स्वास्थ्य संवाद से जुड़ा है। इसी के अनुरूप डॉक्टरों के साथ जनसंवाद और प्रतिभागियों के लिए ओपन ज़ुम्बा सत्र जैसी गतिविधियाँ रखी गई हैं।

200 से अधिक स्टॉल, 300 से ज्यादा कार्यक्रम

पुस्तक प्रेमियों के लिए मेले में करीब 200 स्टॉल लगाए गए हैं, जहाँ देशभर के प्रकाशकों ने अपनी नवीनतम और चर्चित पुस्तकों का प्रदर्शन किया है। इस बार तीन सौ से अधिक कार्यक्रमों की श्रृंखला पूरे मेले के दौरान चलती रहेगी, जिनमें साहित्यिक संवाद, मंचन, सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ और युवा से जुड़ी गतिविधियाँ शामिल हैं।

विश्व की सबसे महंगी पांडुलिपि बना आकर्षण

मेले का सबसे बड़ा आकर्षण दुनिया की सबसे महंगी पांडुलिपि—“मेन” (I)—का प्रदर्शन है, जिसकी कीमत 15 करोड़ रुपये बताई जा रही है। यह पांडुलिपि हिंदी और अंग्रेज़ी दोनों संस्करणों में उपलब्ध है।
स्कूल और कॉलेज के छात्रों को—सोमवार से शुक्रवार तक—वैध परिचय पत्र दिखाने पर निःशुल्क प्रवेश दिया जाएगा।

शनिवार को मेले के दूसरे दिन नुक्कड़ नाटक “धरती की आखिरी पुकार”, “पत्रकारिता का भविष्य” पर जनसंवाद, स्कूल फेस्ट और एक विशेष फिल्म स्क्रीनिंग जैसे कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। “किताबों में शब्द उच्चरित हुए” और “ज्ञान और गुरुकुल” जैसे लोकप्रिय कार्यक्रम भी दर्शकों के बीच आकर्षण का केंद्र बने रहेंगे।

कौन थे अवधेश प्रीत?

12 नवंबर 2025 को दिवंगत हुए अवधेश प्रीत आधुनिक हिंदी कथा-लेखन के महत्वपूर्ण नाम रहे। 13 जनवरी 1958 को उत्तर प्रदेश के तारांव गाँव में जन्मे अवधेश प्रीत ने पत्रकारिता और साहित्य को समान रूप से समृद्ध किया। कुमाऊँ विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद उन्होंने उधमसिंह नगर से अपनी साहित्यिक यात्रा शुरू की और 1985 से बिहार में सक्रिय पत्रकारिता करते हुए दैनिक हिन्दुस्तान में वर्षों तक सहायक संपादक रहे।

उनके प्रमुख उपन्यास और कहानी-संग्रह—

  • ‘अशोक राजपथ’,
  • ‘हस्तक्षेप’,
  • ‘नृशंस’,
  • ‘हमज़मीन’,
  • ‘कोहरे में कंदील’,
    हिंदी साहित्य में अपनी विशिष्ट पहचान रखते हैं। उनकी कई कहानियों का देश–विदेश की भाषाओं में अनुवाद हुआ और दिल्ली सहित कई शहरों में सफल मंचन भी हुए।

अवधेश प्रीत को फणीश्वरनाथ रेणु कथा सम्मान, बनारसी प्रसाद भोजपुरी कथा सम्मान, और सुरेन्द्र चौधरी कथा सम्मान जैसे प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था।

इस पुस्तक मेले को उनके प्रति साहित्य जगत की सामूहिक श्रद्धांजलि माना जा रहा है। संस्कृति, साहित्य और समाज को जोड़ने वाला यह आयोजन आने वाले दिनों में पुस्तक प्रेमियों के लिए विशेष आकर्षण साबित होगा।

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